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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[ फकारादि
अथ फकारादिकषायप्रकरणम्।
(४५१८) फलत्रिकादिक्काथः (१) (४५२०) फलत्रिकादिकाथः (३) ( वृ. नि. र. । सन्निपाता.)
(बं. से. । स्त्रीरो.)
फलत्रिकं दारु वचा सवासा फलत्रिकत्र्यूषणमुस्तकट्टी
___ लाजा सदूर्वा कलशी समझा। कलिङ्गसिंहाननशर्वरीभिः ।
लौद्रान्वितं काथमिदं सुशीतं कायः कृतः कृन्तति कण्ठकुब्ज
सर्वात्मके पेयममुग्दरे हि ॥ ___कण्ठीरवः कुञ्जरमाशु यद्वत् ॥
हर, बहेडा, आमला, देवदारु, बच, बासा, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल,
धानकी खील, दूर्वा, पृष्ठपी और मजीठके काथको नागरमोथा, कुटकी, इन्द्रजौ, बासा और हल्दीका ठण्डा करके उसमें शहद मिलाकर पीनेसे सन्नि. काथ कण्ठकुन्ज सन्निपातको नष्ट करता है।
पातज रक्तप्रदर नष्ट होता है। (४५१९) फलत्रिकादिक्काथः (२)
(४५२१) फलत्रिकादिकाथः (४) ( यो. त. । त. ५१; वृ. मा. । प्रमेहा.)
(यो. चि. । अ. ४) फलत्रिकं दारुनिशां विशाला
फलत्रिकामृतातिक्तानिम्पकैरातवासकाः । मुस्तां च निष्क्वाथ्य निशांशकल्कम् ।
हरिद्रे पनकं मुस्तापामार्ग चन्दनं कणा ॥ पिबेत्कषायं मधुसंयुतं च
पटोल पर्पटं चैषां काथः कमलवातहा॥ ___ सर्वप्रमेहेषु समुत्थितेषु ॥
हर, बहेड़ा, आमला, गिलोय, कुटकी, नीमकी हर, बहेड़ा, आमला, दारुहल्दी, इन्द्रायन | छाल, चिरायता, बासा, हल्दी, दारुहल्दी, पाक, और नागरमोथा; इनके काथमें शहद और हल्दीका | नागरमोथा, अपामार्ग ( चिरचिटा ), लालचन्दन, कल्क मिलाकर पीनेसे सब प्रकारके प्रमेह नष्ट | पीपल, परवल और पित्तपापड़ेका काथ कामलाको
नष्ट करता है।
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