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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रमकरणम् ] तृतीयो भागः। [५३७] इसे योनिमें धारण करने से योनिस्राव बन्द | अनेन क्रमयोगेन मलमाम विरेचनम् । होकर योनि शुद्ध हो जाती है। करोति सकलं देहं शुद्धवर्ण निरामयम् ।। (४५१०) पुनर्नवामूलधारणम् बिंडालडोढा, अमलतासका गूदा और गुड़ (रा. मा. । स्त्री. रो.) समान भाग लेकर तीनोंको अच्छी तरह बारीक मूल पुनर्नवायाः सतैलमीपत्कृतं गुह्ये ।। पीसकर बत्ती बनावें । गर्भ प्रवेपमान सहसा स्त्रीणां वहिः कुरुते ॥ इसे गुदामें रखनेसे पेट से आम (कच्चा मल) निकलकर देह शुद्ध हो जाती है। पुनर्नवा ( साठी ) की जड़को तैलसे चिकना करके योनिमें प्रविष्ट करनेसे मूढ़ गर्भ तुरन्त बाहर ____ आमके साथमें बत्ती भी बाहर निकल आती आ जाता है। है, उसे पानीसे धोकर पुनः लगा लेना चाहिये । (४५११) पीलुरसायनम् इसी प्रकार बार बार लगानेसे सब आम निकल जाती है । ( यह प्रयोग प्रवाहिका में अत्यन्त (ग. नि.) | उपयोगी है।) पोलून्या णि सेवेत पतं पक्षार्टमेव वा । न चान्न शीलयेत्किश्चित्तेभ्यः सौख्य (४५१३) पूतीकपत्रादियोगः मवाप्नुयात् ।। (वं. से. । गुल्म., अम्लपित्त.) एतदीशि शमयेच्छ्रेष्ठं पीलरसायनम् । खादेद्वाप्यकुरान् भृष्ट्वा पूतीकनृपक्षयोः । ग्रहणीकृमिदोषाणां गुल्मिनाममृतोपमम ॥ | पिवेत्रिसन्नागरं वा सगुडां वा हरीतकीम् ।। १५ दिन या ७ दिन तफ अन्नादि बन्द करा और अमलतासकी कॉपलेको (धीमें) करके केवल पीलके ताजे फलों पर रहने से अर्श भूनकर खानेसे अथवा निसोत और सांठके चूर्णको ग्रहणी, कृमि और गुल्मका नाश हो कर मनुष्य ! ( गरम पानीके साथ) पीनेसे अथवा हरके चूर्णको सुखी हो जाता है। गुड़में मिलाकर खानेसे गुल्म और अम्लपित्तका यह एक श्रेष्ठ रसायन प्रयोग है और उक्त | नाश होता है। रोगांमें अमृतके समान गुणकारी है। (४५१४) पूपकयोगः (ग. नि. । क्रिमि.) (४५१२) पुष्परेचनी गुटिका आखुपर्णीदलैः पिष्टैः पिष्टकेन च पूपकान् । (र. चं.; र. सा. सं. । विरेका.) पक्त्वा सौवीरकं चानु पिबेत् क्रिमिहरं परम् ॥ देवदाली स्वर्णपुष्पं गुडेन वटकीकृतम् । ___मूषाकर्णी के पत्तोंको पीसकर पुराने चावलों गुदमध्ये प्रदेयैषा पातयेच्य महागदम् ॥ की पिट्टी में मिलाकर उसके पूड़े बनवावें । अधश्च साममायाति पुनः सा दीयते गुदे। इन्हें खाकर ऊपरसे सौवीरक कांजी पीनेसे प्रक्षाल्य वारिणा चैषा वारं वारं प्रयच्छति ॥ । कृमि रोग नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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