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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५३८] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [पकारादि (४५१५) पूपलिकायोगः | दिने दिने तत्परिचालयेच्च (ग. नि. । ग्रन्थ्याध.) ___स्वच्छं जलं लोहकटाइमध्ये ॥ वनकार्पासिकामूलं तन्दुलैः सह योजितम् । | निधाय चुल्ल्याश्च पचेत पश्यन् पक्त्वा पूपलिकां खादेदपचीनाशनाय च ।।। सेटार्धशिष्टत्वमवेक्ष्य तत्र । बनकपासकी जड़को पीसकर चावलों की जलं रसोनस्य पलं ददीत पिट्ठी में मिलावें और फिर उसके पूड़े बनवा कर चतुःपलश्चान्ववतारयेत ॥ खावें। वर्णेन रक्तं ममृणं च तीक्ष्णं इनके सेवन से अपची (गण्डमाला भेद ) । क्षारं भरेताथ च काचकूप्याम् । नष्ट होती है। ग्रन्थीनशेषांश्च भिनत्ति कुर्या कोयत्रणांश्चापि कथावशेषान् ॥ (४५१६) पृश्निपादिपेया श्वेतञ्च कुष्ठं गजचर्म दद्न् (. मा.; ग. नि. । ज्वरातिसा.) पृश्निपीबलाविल्वनागरोत्पलधान्यकैः।। क्षारः क्षिणोत्येष विलेपनेन । देशश्च कालं बलमातुरस्य ज्वरातिसारी पेयां वा पिबेत्साम्लां भृतां नरः॥ समीक्ष्य कुर्यात्मतिसारयोगम् ।। ___पृष्ठपर्णी, खरैटी, बेलगिरी, सांठ, नीलोत्पल अर्थ--सुश्रुत सूत्रस्थान ११ ग्यारहवें अध्याऔर धनिये के पानीमें पेया ( कण सहित मांड) | हत माड | यमें ग्रन्थि आदि को बहानेवाला प्रतिसारणीय बनाकर उसमें अनारका रस मिलाकर पिलानेसे और पाचनीय दो प्रकारके क्षार लिखे हैं परन्तु और ज्वरातिसार नष्ट होता है। | उन औषधियोंका संग्रह करना बहुत परिश्रमसे साध्य (समस्त ओषधियां समान भाग मिश्रित १। तोला । पाकार्थ जल २ सेर । शेष १ सेर ।) है इस लिये काम चलाने के लिये अपना अनुभूत प्रतिसारणीय नामक (प्लेगआदि रोगांकी गाठेको (४५१७) प्रतिसारणीय फोड़कर बहाने वाला ) क्षार लिखता हूं(ग्रन्थिभेदन)क्षारः एकसेर (लोटिया) सज्जी, दोसेर विनाबुझा(रसायनसार) या हुवा चूना, दोनोंको कूट कर एक नांदमें डाल दे सेटोन्मिता स्वर्जिरथो सुधापि और उसी नांदमें एक मन पक्का पानी भरदे; फिर द्विसेटिका तद्वयकुट्टनेन । डंडेसे चूना सज्जी और पानी तीनोंको खूब मिलादे, चूर्ण विधायाथ निधाय नान्यां परन्तु यह स्मरण रहे कि इसको हाथसे कभी न मणप्रमाणेन जलेन साकम् ॥ मिलावे नहीं तो हाथका चमड़ा उतर जायगा। सन्नीय दण्डेन निराहते चो फिर खुलेहुवे मैदान में इसको पांच दिन तक पेक्ष्येत देशे दिनपश्चकं तत् । । छोड़दे, जिसमें धूप और चन्द्रमाकी चांदनी इसपर For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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