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सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, हर्र, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, और बायविडंग का चूर्ण समान भाग तथा शुद्ध गूगल सबके बराबर लेकर सबको एकत्र मिलाकर और उसमें जरासा घी डालकर करें ।
भारत-भैषज्य रत्नाकरः ।
(३०१३) दधित्थरसादिलेहः ( वृं. नि. र. । छर्दि )
[ दकारादि
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शोफं प्लीहानमत्युग्रकामलामपचीमपि । नाना द्वात्रिंशको ह्येष गुग्गुलुः कथितो महान् ।। धन्वन्तरिकृतो योगः सर्वरोगनिषूदनः ॥
यह गुग्गुलु मेदरोग, कफज व्याधि और आमवात (गठिया) को नष्ट करता है । (३०१२) द्वात्रिंशको गुग्गुलुः ( वृ. यो. त. । त. ९०; वृ. नि. र.; यो. र. । वाव्या. ग. नि. । गुटिका ; यो त । त. ४०) त्रिकटु त्रिफला मुस्तं विडङ्गं चव्यचित्रकौ । चैला पिप्पलीमूलं हपुषा सुरदारु च ॥ तुम्बुरु पौष्करं कुष्ठं विषा च रजनीद्वयम् । वाष्पिका जीरकं शुण्ठी पत्रं च सदुरालभम् ॥ सौवर्चलं विडं चैव क्षारौ द्विरद पिप्पली । सैन्धवं च समानेतान्कृत्वा तुल्यं च तैः पुरम् ॥ सrafear विधानेन कोलमात्रां वटीं चरेत् । घृतेन मधुना वापि भक्षयेत्ता महर्मुखे || आमं हन्यादुदावर्त्तन्त्रवृद्धिं कृमी रुजः । महाज्वरोपसृष्टानां भूतोपहतचेतसाम् ॥ आनाहोन्मादकुष्ठानि पार्श्वशूलहृदामयान् । गृध्रसीं व हनुस्तम्भं पक्षाघातापतानकान् ॥ इति दकारादिगुग्गुलुमकरणम् ।
दधित्थर संयुक्तं पिप्पली माक्षिकं तथा । मुहुर्मुहुर्नरो लिह्याच्छर्दिभ्यः प्रतिमुच्यते ॥
कैथके रस में पीपलका चूर्ण और शहद मिला कर बार बार चाटने से छर्दि (वमन) नष्ट हो जाती है ।
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सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, मोथा, बायबिडंग, चव्य, चीता, बच, इलायची, पीपलामूल, हाऊबेर, देवदारु, तुम्बरु, पोखरमूल, कूठ, अतीस, हल्दी, दारूहल्दी, कालाजोरा, सफेद जीरा, सोंठ, तेजपात, धमासा, सञ्चल ( काला नमक) विडनोन, यवक्षार, सज्जीखार, गजपीपल और सेंधानमकका चूर्ण १ - १ भाग तथा सबके बराबर शुद्ध गूगल लेकर सबको एकत्र मिलाकर थोडासा घी डालकर अच्छी तरह कूटकर १-१ कोल ( लगभग ३ माशे ) की गोलियां बनालें । इनमेंसे १-१ गोली नित्य प्रति प्रातः काल घी या शहद में मिलाकर खानेसे आम, उदावर्त, अन्त्रवृद्धि, कृमिरोग, भयङ्कर ज्वर, भूतकृत चित्तविकृति (भूतोन्माद ), आनाह, उन्माद, कुष्ठ, पसलीका शूल, हृद्रोग, गृध्रसी, हनुस्तम्भ, पक्षाघात, अपतानक, शोथ, दुस्साध्य तिल्ली, कामला और अपची ( कण्ठमाला भेद ) आदि अनेकों रोग नष्ट होते हैं ।
इसके आविष्कारक महाराज धन्वन्तरि थे ।
अथ दकाराद्यवलेह प्रकरणम्.
( पीपल ३ माशे, कैथका रस १ तोला, शहद १ तोला | यह एक दिनकी मात्रा है । ) (३०१४) दन्तीहरीतक्यावलेहः ( वं. से.; भै. र; वृं. मा. धन्वं. र. र.; च.द. | गुल्म.; ग. नि. । लेहा.; वा. भ. । चि. अ. १४) जलद्रोणे विपक्तव्या विंशतिः पञ्चचाभयाः । दन्त्याः पलानि तावन्ति चित्रकस्य तथैव च ॥
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