SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवलेहप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [४३] अष्टमागावशेषन्तं रसं पूतमधिश्रयेत् । विरेचन हो जाता है। दन्तीसमं मुडं पूतं दद्यात्तत्राभयाश्च ताः॥ यह अवलेह गुल्म, सूजन, बवासीर, पाण्डु, तैलार्धकुडवं चैव त्रिवृतायाश्चतुष्पलम् । अरुचि, हृद्रोग, ग्रहणी, कामला, विषमज्वर, तिल्ली चूर्णितं चापलिकं पिप्पलीविश्वभेषजम् ॥ | और अफारा आदि रोगांको नष्ट करता है। तत्साध्यं लेहवच्छीते सस्मिस्तैळसमं मधु । (व्यवहारिक मात्रा १ से २ तोले तक।) क्षिपेचूर्ण पलञ्चैकं त्वगैलापत्रकेसरात् ।। (३०१५) दशमूलगुडः (१) सतो लेहपलं कीदा जग्ध्वा चैकां हरीतकीम् । ( भै. र. । ग्रहणी.) मुख विरिच्यते स्निग्धो दोषप्रस्थमनामयः॥ दशमूलीपल शतं जलद्रोणे विपाचयेत् । गुल्मं श्वयधुमीसि पाण्डरोगमरोचकम् । तेन पादावशेषेण पचेगुडतुलां भिषक् ।। हृद्रोगग्रहणीदोषान्कामलां विषमज्वरान् ॥ आर्द्रकस्वरसमस्यं दत्वा मृद्वग्निना ततः। गुल्मंप्लीहानमानाहमेतान्हन्त्युपसेविता ॥ लेहीभूते प्रदातव्यं चूर्णमेषां पलं पलम् ।। ___ एक द्रोण (.३२ सेर) पानीमें २५ पल पिप्पली पिप्पलीमूलं मरिचं विश्वभेषजम् । दन्ती, और २५ पल चीता डालकर पकावे साथ हिङ्गभल्लातकश्चैव विडङ्गमजमोदकम् ॥ ही उसमें अच्छी बड़ी बड़ी २५ हरें भी द्वौ क्षारौ चित्रकं चव्यं पश्चैव लवणानि च । कपड़े में बांधकर डाल दें । जब ४ सेर पानी दवा मुमथितं कृत्वा स्निग्धे भाण्डे निधाशेष रह जाय तो उन हर्रोको निकाल कर पयेत् ॥ अलग रख दें और काथको छानलें । इसके पश्चात् कोलमा ततः खादत्मातः भातविचक्षणः । २ पल* तिलके तेलमें ४ पल निसोत और । हन्ति मन्दानलं शोथमामजां ग्रहणीमपि । आधा आधा पल पीपल तथा सेठिका चूर्ण तथा आम सर्वभवं शूलं प्लीहानमुदरं तथा।। वे हर्र भून लें और उपरोक्त काथमें यह चूर्ण, २५ मन्दानलभवं रोग विष्टम्भ गुदजानि च ॥ पल गुड़ और हर डाल कर पकावें । जब ज्वरं चिरन्तनं हन्ति तमिस्र भानुमानिव ॥ अवलेह तैयार हो जाय और करछीको लगने लगे १०० पल (६। सेर ) दशमूलको १ द्रोण तो उतारकर ठण्डा करें और फिर उसमें २ पल (३२ सेर) पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष शहद तथा दालचीनी, तेजपात, इलायची आर रह जाय तो छानकर उसमें १ तुला (६। सेर) नाग केसरका समानभाग मिश्रित १ पल (५ तोले) गुड़ और १ प्रस्थ (२ सेर ) अद्रकका रस मिलाचूर्ण मिला दें। कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब गाढ़ा हो जाय और इसमें से १ पल (५ तोले ) अवलेह और करछीको लगने लगे तो उसमें १-१ पल (५-५ १ हर्र खानेसे कोठा स्निग्ध होकर अच्छी तरह | तोले ) पीपल, पीपलामूल, काली मिरच, सेठ, हांग, * ४ पल पाठ भी मिलता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy