SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५३०] भारत-भैषज्य-लाकरः। [पकारादि (४४८५) प्लीहान्तको रसः (४४८६) प्लीहारिरसः (१) (भै. र. । प्लीह.) (भै. र.; र. सा. सं.; र. रा. सु. । प्लीहा.) कक तालचूर्णस्य तत्पादांशं सुवर्णकम् । गृतं शुल्वञ्च तारञ्च गगनायसमौक्तिकाः। पला मृतताम्रञ्च तत्सम शुद्धमभ्रकम् ॥ दरदं पुष्करं मृतं गन्धकं नवमं तथा ॥ मृगाजिनस्य भस्मापि कर्षमत्र प्रदापयेत् । गुग्गुलस्विकट रास्ना तथा जैपालबीजकम् । लिम्पाकात्विचस्तद्वत्सर्वमेकत्र कारयेत् ।। प्रिफला कटुका दन्ती देवदाली तु सैन्धवम् ।। गुमाद्वयं प्रमाणेन वटिकां कारयेत्ततः । पिता तु यवक्षारं वातारितैलमर्दितम् ।। मधुना वहिपूर्णेन खादेन्नित्यं यथावलम् ॥ अशोदराणि पाण्डत्वमानाहं विषमज्वरम् ।। असाध्यमपि प्लीहानं हन्त्यवश्यं न संशयः। अजीर्णमाम कर्फ क्षयन सर्वशूलकम्।। यकृतं पाण्डुरोगच गुल्मादिकभगन्दरान् । कास श्वास शोथञ्च सर्वमाशु व्यपोहति ॥ शुद्ध हरताल १ कर्ष (२१ तोला), स्वर्णप्लीहान्तको रसो नाम प्लीहोदरविनाशनः॥ भस्म चौथाई कर्ष ( ३॥ माशे), ताम्रभस्म २॥ ___ ताम्रभस्म, चांदीभस्म, अभ्रकभस्म, लोहभस्म, तोले, अभ्रकभस्म २॥ तोले, मृगचर्मकी भस्म १॥ मोतीभस्म, शुद्ध हिंगुल, पोखरमूल, शुद्ध पारद, तोला और बिजौ रेनीबूफी जड़की छालका चूर्ण । शुद्ध गन्धक, शुद्ध गूगल, सेांट, मिर्च, पोपल, तोला लेकर सबको एकत्र मिलाकर पानीके साथ राला, शुद्ध जमालगोटा, हरं, यहेड़ा, आमला, | घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें। कुटकी, दन्तीमूल, बिंडालडोढा, सेंधानमक, निसोत । इन्हें चित्रकमूलकी छालके चूर्ण और शहदके और जवाखार समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक- साथ सेवन करनेसे असाध्य प्लीहा भी अवश्य नष्ट की कज्जली बनावें और फिर उसमें नमालगोटा । हो जाती है। इसके अतिरिक्त ये यकृत् , पाण्डु, तथा गूगल डालकर थोडा थोड़ा अण्डीका तेल | गुल्म और भगन्दर को भी नष्ट करती हैं। डालते हुवे अच्छी तरह घोटें । जब गूगल कज्ज- (४४८७) प्लीहारिरसः (२) लीमें मिल जाय तो अन्य समस्त चीजोका महीन (भै. र. । प्लीहा.) चूर्ण मिलाकर आवश्यकतानुसार अण्डीका तेल पारदं गन्धकं टकं विषं व्योष फलत्रयम् । डालकर घोटकर (६-६ रत्तीकी) गोलियां बनालें। तोलकस्य समोपेतं जैपाल तदर्द्धकम् ॥ गोलियां आट प्रकार के उदर रोग. पाण्ड. किंशुकस्य रसेनैव याममात्रन्तु मर्दयेत् । मानाह, विषमज्वर, अजीर्ण, आम, कफ, क्षय, सब ! गुआमात्रां वटीं कृत्वा छायायां सोषयेत्ततः॥ प्रकारले शूल, खांसी, श्वास, शोथ और विशेषतः वटिकैका प्रदातव्या शृङ्गवेररसेन च । गिल्लीका नाश करती हैं । | गुदाकरे गुल्मशूले प्लीहशोथे कफात्मके । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy