________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
हतीयो भागः।
[५२९]
-
-
-
उपरोक्त तैयार रसको धूपमें सात भावना देकर । (४४८४) प्लीहशार्दूलो रसः । सुखाकर पीस लें।
(भै. र.; र. रा. सुं.; रसें. सा. सं. । प्लीहा.; . इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार पानमें रखकर
रसें. चिं. म. । अ. ९) खाना चाहिये। और नवीन तीब्र ज्वरमें देना हो तो सूतकं गन्धकं व्योष समभाग पृथक् पृथक् । ऊपरसे उष्ण जल भी पिलाना चाहिये।
एभिः समं ताम्रभस्म योजयेद्वैधसत्तमः ॥ इसके सेवनसे सन्निपातका प्रकोप, शीत ज्वर,
मनःशिला वराटश्च तुत्यं रामठलौहकम् । दाहपूर्व ज्वर, गुल्म, त्रिदोषज शूल और ज्वरका
जयन्ती रोहितश्चैव क्षारटङ्कणसैन्धवम् ।। प्रचण्ड ताप शान्त होता है।
विडं चित्रं कानकञ्च रसतुल्यं पृथक् पृथक् ।
भावयेत्रिदिनं यावत् त्रिवृच्चित्रकणार्द्रकैः ।। इस रसके ऊपर रोगीकी इच्छानुसार भोजन | गुजामात्रां वटी खादेत्सद्यःप्लीहविनाशिनीम् । देना चाहिये । तथा उसके शरीरपर चन्दनादिका मधपिप्पलिसंयुक्तां द्विगुआं वा प्रयोजयेत् ।। लेप करना चाहिये ।
प्लीहानमग्रमांसश्च यकृद्गुल्मंसुदुस्तरम् । (४४८३) प्राणेश्वरो रसः (४)
आमाशयेषु सर्वेषु चोदरे शोथविद्रधौ ।।
अग्निमांधे ज्वरे चैव प्लीहि सर्वज्वरेषु च । (भै. र. । ज्वराति.; र. चं.; रसें. सा. सं. । ज्वरा.) |
श्रीमद्गहननाथेन भाषितः प्लीहशार्दलः॥ रसगन्धकमभ्रश्च टङ्कणं शतपुष्पकम् ।
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, सेांठ, मिर्च और यमानी जीरकाख्यञ्च प्रत्येकं कर्षयुग्मकम् ॥ पीपल १-१ भाग, तात्रभस्म ५ भाग तथा मनकर्षमेकं यवक्षारं हि पटुकपञ्चकम् । सिल, कौड़ीभस्म, तुत्थभस्म, भुनी हुई हींग, लोह विडजेन्द्रयवं सर्जरसकं चामिसङ्गितम् ॥ भस्म, जयन्ती, रुहेड़ेकी छाल, यवक्षार, सुहागेकी धृष्टदा च वटिका कार्या नाम्ना प्राणेश्वरो
खील, सेंधानमक, बिडनमक, चीतामूल और धतू. | रेके बीज १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी
कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य जोषियोंशुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, अभ्रकभस्म, सुहा- |
स्म, सुहा- का महीन चूर्ण मिलाकर सबको ३-३ दिन गेको खील, सौंफ, अजवायन और जीरा २-२ निसोत, चीता और पीपलके काथ तथा अद्रकके कर्ष तथा जवाखार, हींग, पांचों नमक, बायवि- रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें। डंग, इन्द्रजौ, राल और चीता १-१ कर्ष लेकर इनमेंसे २-२ गोली पीपलके चूर्ण और प्रथम पारे गन्धककी कम्जली बनावें और फिर शहदके साथ सेवन करनेसे प्लीहा, अप्रभास, उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिलाकर पानीके | यकृत् दुस्साध्य गुल्म, आमाशय रोग, उदररोग, साथ घोटकर (१-१ माशेकी ) गोलियां बना लें। शोध, विद्रधि, अग्निमांद और परका नाश
(इनके सेवनसे ज्वरातिसार नष्ट होता है।) होता है।
For Private And Personal Use Only