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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] इतीयो भागः। [५३१] - नष्ट ह उदावते वातशूले श्वासकासज्यरेषु च। चूर्ण ५ तोले लेकर प्रथम पारेगन्धककी कज्जली रसः प्लीहारिनामाय कोष्ठामय विनाशनः॥ बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर सबको आमवातगदच्छेदी श्लेष्मामयविनाशनः ॥ | पानीके साथ घोटकर ९-९ रत्तीकी गोलियां ___ शुद्ध पारद, शुंद्र गन्धक, सुहागेकी खील, | बनावें । शुद्ध बछनाग, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा और इनके सेवनसे प्लीहा, यकृत् , और गुल्म अवश्य आमला १-१ तोला तथा शुद्ध जमालगोटा सबसे | आधा लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनायें | (व्यवहारिक मात्रा ४-६ रत्ती) और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका महीन चूर्ण | (४४८९) प्लीहारिवटिका मिलाकर सबको १ पहर केसूके फूलेकि रसमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बनाकर छायामें (भै. र. । प्ली.) सुखालें। महासाराभ्रकासीसलशुनानि समानि च । इनमेंसे १-१ गोली अदरकके रसके साथ द्रोणपुष्पीरसेनैव मर्दयेत्महरत्रयम् ॥ देनेसे अर्श, गुल्म, शूल, प्लीहा, कफजशोथ, उदा बल्लद्वयं प्रदातव्यं भदोषे सलिलं हनु। वर्त, वातजशूल, श्वास, खांसी, ज्वर, समस्त उदर प्लीहानं यकृतं गुल्ममनिमान्ध सशोथकम् ॥ विकार और आमवात तथा कफविकार नष्ट कासं श्वासं तृषां कम्पं दाह शीतं वर्मि भ्रभिम् । होते हैं। प्लीहारिवटिका ह्येषा नाशयेन्नात्र संशयः ।। एलवा, अभ्रकभस्म, कसीस और ल्हसन (४४८८) प्लीहारिरसः (३) समान भाग लेकर सबको ३ पहर गूमाके रसमें (र. सा. सं.। प्लीह.; रसें. चिं. म. । अ.. घोटकर ६-६ रत्तीकी गोलियां बनावें। ९; र. रा. सु.। प्ली.) इन्हें सायकालके समय पानीके साथ सेवन द्विकर्ष लौहभस्मापि कर्ष तानं प्रदापयेत् । करनेसे प्लीहा, यकृत् , गुल्म, अग्निमांद्य, शोथ, शुबसूतं तथा गन्धं कर्षमानं भिषग्वरः ।।। खांसी, श्वास, तृषा, कम्प, दाह, शीत, वमन और मृगाजिनं पलं भस्म लिम्पाकाङ्गित्वचः पलम् । भ्रमका नाश होता है। एवं भागक्रमेणैव कुर्यात्प्लीहारिका वटीम् ।। नव गुञ्जामितां खादेचाथ नित्यं हि पूतवान् । (४४९०) प्लीहार्णवो रस: प्लीहानं यकृतं गुल्मं हन्त्यवश्यं न संशयः।। (भै. र.; र. रा. .: र. . . . . . - प्लीहा.: रसें. 4. . ॐ ___लोहभस्म २॥ तोले, ताम्रभस्म ११ तोला, । . शुद्ध पारद और गन्धक ११-१। तोला, मृगचर्म- । हिलं गन्धक समकालिन भस्म ५ तोले और बिजौरकी जड़की छालका : प्रत्येक पलिका : For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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