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[४०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[दकारादि ऊपर चिकनी मिट्टीका आध अंगुल मोटा लेप तिलका क्षार, अरण्डका क्षार, द्रवन्ती (महाकरके कण्डेांकी मन्दाग्नि में दबा दें । जब मि- दन्ती) का क्षार, शुद्ध भिलावा और पीपल का चूर्ण ट्टीका रंग लाल हो जाय तो ठण्डा करके अनार १-१ भाग तथा गुड़ इन सबके बराबर लेकर समेत पीसलें और बेरकी गुठली के बराबर गोलि- एकत्र मिलाकर गोलियां बनावें। यां बनावें ।
इन्हें अग्निबलोचित मात्रानुसार सेवन करने ___इन्हें तकके साथ देनेसे पक्कातिसार नष्ट | से अग्निकी वृद्धि होती और तिल्ली, यकृत् तथा होता है।
गुल्मका नाश होता है। (३००५) दुर्नामकुठाररसः
(मात्रा-३ माशे । अनुपान शीतल जल । (मोदक) .
जिन्हें भिलावा अनुकूल न आता हो उन्हें यह (वै. रह. । अर्श.)
गोलियां सेवन न करनी चाहिएं।) मरिचं पिप्पली कुष्ठं सैन्धवं जीरनागरम् ।
(३००७) द्राक्षादिगुटिका (१) बचाहिङ्गविडङ्गानि पथ्या वयजमोदकम् ॥
। (यो. र; वं. से.। विसर्प; वृ. यो. त.। त. १२२; एतेषां कारयेच्चूर्ण चूर्णस्य द्विगुणं गुडम् ।
____ यो. चिं. । अ. ७; यो. त.। त. ६४ ) खादेत्कर्षमितं चापि पिबेदुष्णजलं ततः ॥
| द्राक्षापथ्ये समे कृत्वा तयोस्तुल्यां सिता सर्वाण्यीसि नश्यन्ति वातजानि विशेषतः।।।
सङ्खट्याक्षद्वयमितां तत्पिण्डी कारयेद्भिषक् । काली मिर्च, पीपल, कूठ, सेंधानमक, जीरा,
तां खादेदम्लपित्तात्तों हत्कण्ठदहनापहाम् । सेठ, बच, हींग, बायबिडंग, हर, चीता, और
तृणमूभ्रिममन्दामिनाशिनीमामवातहाम् ॥ अजमोदका चूर्ण १-१ भाग और गुड़ इन सबके
दाख और हर्रका चूर्ण १-१ भाग तथा बराबर लेकर सबको एकत्र मिलाकर १-१ कर्षके
खांड २ भाग लेकर एकत्र कूटकर २॥-२॥ मोदक बनावें।
तोलेकी गोलियां बनावें । इन्हें गर्म जलके साथ सेवन करने से समस्त
इन्हें सेवन करने से अम्लपित्त, कण्ठ और प्रकारकी बवासीर और विशेषतः वातज अर्थात्
हृदयकी दाह, तृष्णा, मूर्छा, भ्रम, मन्दाग्नि और बादीकी बवासीर नष्ट होती है।
आमवातका नाश होता है। (३००६) द्रवन्तीनागवटी .
( व्यवहारिक मात्रा-१ तोला । अनुपान ( यो. र. । गुल्म; वृ. यो. त.। त. १०५)
शीतल जल ।) तिलैरण्डद्रवन्तीनां क्षारो भल्लातकं कणा।। (३००८) द्राक्षादिगुटिका (२) एषां भागं समं कृत्वा तत्तुल्यं तु गुडं मतम् ॥ | (वृ. नि. र.। ग्रह.) खादेढ निबलं ज्ञात्वा पावकस्य विवृदये। . द्राक्षा क्षीरेण संपाच्य यावदाव्युपलेपनम् । जयेत्लोहानमत्युग्रं यकृद्गुल्मं तथैव च ॥ पश्चाद्याद्भिषक माशो औषधानि पृथक् पृथकू।।
क्षिपेत् ।
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