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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुटिकामकरणम् ] हतीयो भागः। [३९] मर्वतुल्या सिता योज्या पगर्दै भक्षयेत्सदा।। पिष्टवा कल्क विधायाय गुटिकाः संप्रकल्पयेत् " दशसारवटी " ख्याता सर्ववातविकारनुको कर्कन्धुवत्यमाणेन तक्रेण सह दापयेत् ।। मुलेठी, आमला, स्खरैटी, दाख (मुनक्का ), | पकातीसारशमनी "दासिमीवटिका "स्मृता ।। इलायची, सफेद चन्दन, एलबालक, महुवेके फूल, सेठ, सोया (या सौंफ), मुलैठी, अफीम, खजूर और अनार दाना । सब चीजोंका चूर्ण खजूरके फल, बेलगिरी और मोचरस, १-१ भाग समान भाग तथा खांड सबके बराबर लेफर एकत्र तथा कच्चे अनारके बीज सबके बराबर लेकर मिलाकर चोटें और ( आवश्यकता हो तो) थोड़ा चूर्ण बनावें फिर कच्चे अनारको भीतरसे खाली सा पानी डालकर आधे आधे पल (२॥२॥ | करके उसके भीतर यह सब चूर्ण भरदें। उसपर तोले ) की गोलियां बना लें। चिकनी मिट्टीका आधा अंगुल मोटा लेप करके यह 'दशसारवटी' समस्त वातज रोगांका | कण्डोंकी मन्दाग्निमें दबा दें। जब मिट्टीका रंग नाश करती है । ( व्यवहारिक मात्रा-३ से ६ / लाल हो जाय तो अनारको बाहर निकाल कर माशे तक ।) उसके ऊपरकी मिट्टी छुड़ा दें और उसे ( अमार (३००२) दाडिमादिगुटिका समेत ही) पानी के साथ पीसकर बेरके बराबर (वा. भ. । चि. अ. ३) गोलियां बनावें। दे पले दाडिमादष्यै गुडायोषात्पलत्रयम् । । इन्हें तक्रके साथ खिलाने से पकातिसार रोचनं दीपनं स्वयं पीनसश्वासकासजित ॥ नष्ट होता है । ___ अनार दाना १० तोले, गुड़ ४० तोले । (३००४) दाडिमीवटी (२) तथा सेांठ, मिर्च और पीपल ५-५ तोले लेकर (वृ. नि. र.; वै. र. । अति.) सबका चूर्ण करके, एकत्र मिलाकर गोलियां बनावें। शुण्ठी जातीफलं चाहिफेनकं द्विगुणं भवेत् । यह गोलियां रोचक, दीपन, स्वरको सुधारने | अपक दाडिमीबीजं सर्वतुल्यं प्रदापयेत् ।। वाली, और पीनस खांसी तथा श्वास नाशक हैं। अपक्कदाडिमीवीजकोशे क्षिप्त्वा मृदा लिपेत् । (३००३) दाडिमीवटी (१) | पुटपाकविधानेन पक्त्वा कोशसमन्वितम् ॥ (वृ. नि. र.; वै. र. । अति.) | पिष्ट्वा फल्कं विधायाथ गुटिकाः सम्प्रकल्पयेत् । विश्वा च शतपुष्पा च यष्टया चाहिफेनकम् । बादरास्थिप्रमाणेन तक्रेण सह दापयेत् ॥ खजूरस्य फलं बिल्वं तथा मोचरसं स्मृतम् ॥ पकातिसारशमनी दाडिमीवटिका मता ॥ समभागानि सर्वाणि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ।। सांठ १ भाग, जायफल १ भाग और अफीम अपकदाडिमीबीजं सर्वतुल्यं मदापयेत् ॥ ४ भाग तथा कच्चे अनारके बीज ६ माग अपक्कदाडिमीबीजकोशे क्षिप्त्वाखिलं हि तत् । लेकर चूर्ण बनावें और उसे कच्चे अनारको भीतपुटपाकविधानेन पत्त्वा कोशसमन्वितम् ॥ । रसे खाली करके उसके भीतर भर दें और उसके For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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