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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५०६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि - (४४३७) प्रचण्डरस: [ शुद्ध हरताल, शुद्ध पारद, लोहभस्म, सुहागेकी (नवज्वरविनाशनरसः) खील; खपरियाभस्म, सज्जीक्षार, मजीठ और ( भै. र.; र. चि.; र. रा. सु.; वै. क. द्रु. । शुद्ध हिंगुल समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक स्क. २ ज्वर.) की कजली बनावें फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको १-१ दिन संभालू और अमृतं पारदं गन्धं मर्दयेत् महरद्वयम् । सिन्धुवाररसैः पश्चाद्भावयेदेकविंशतिम् ।। हाथी सुण्डीके रसमें घोटकर गोला बना लें और तिलप्रमाणं दातव्यं नवज्वरविनाशनम् । उसे आतशी शीशीमें डालकर आठ पहर बालुका यन्त्रमें पकावें । तदनन्तर शीशीके स्वांग शीतल उद्वेगे मस्तके तैलं तक्रं चापि प्रदापयेत् ॥ होने पर उसमें से रसको निकाल कर पीस लें । शुद्ध मीटा तेलिया, शुद्ध पारा और शुद्ध इसमें से १ रत्ती रस अद्रकके रसके साथ गन्धक समान भाग लेकर कजली करके उसे २ | देनेसे सन्निपात ज्वर नष्ट होता है । पहर तक घोटें तत्पश्चात् संभालके रसकी २१ (४४३९) प्रतापमार्तण्डो रसः भावना दें। ( भै. र.; र. रा. सु.; र. सा. सं. । ज्वर. ) इसमें से १ तिलके बराबर रस देनेसे नवीन विपहिङ्गलजैपालटङ्गणं क्रमवदितम् । ज्वर नष्ट होता है। इसके खानेके प.चात् यदि बेचैनी हो तो रसः तापमार्तण्डः सद्यो ज्यरविनाशनः ।। शिरपर तैलकी मालिश करानी और तक पिलाना शुद्ध बछनाग १ भाग, शुद्ध हिंगुल (शिंगचाहिये। रफ ) २ भाग, शुद्ध जमालगोटा ३ भाग और ( अनुपान--शहद । ) मुहागेकी खील ४ भाग लेकर सबको एकत्र पीस कर रक्खें । (४४३८) प्रतापतपनो रसः इसके सेवनसे ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो (र. रा. सु.; भै. र. । यर.) जाता है। गन्धकं हिङ्गलं तालं मृतकं लौहटङ्गणम् । ( मात्रा...-: रत्ती) खपरं साचिकाक्षारं मनिष्ठां हिङ्गलं समम् ।। (४४४०) प्रतापलङ्केश्वररमः (१) रसेन मदितं पिण्डं निर्गुण्डीहस्तिशुण्डयोः । (र. र. स. । अ. २० कुष्ट.) अष्टयामं पचेत् कूप्यां निरुध्य सिकताहये । विपादिकानं रसगन्धटङ्कणं ततः सिद्धं समादाय रक्तिकामाईकेन च ॥ सताम्रकुष्ठायसपिप्पलीरजः। सन्निपातविनाशाय प्रतापतपनो रसः ॥ विमर्दितं काञ्चनपत्रवारिणा शुद्ध गन्धक, शुद्ध हिंगुल ( शिंगरफ), प्रतापलङ्केश्वरसज्ञको रसः॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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