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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५०४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि क्षीणानामल्पशुक्राणां वृद्धानां वातरेतसाम् । इसके सेवनसे मेधा और वाचा शक्तिकी ओजस्तेजस्करश्चाऽयं स्त्रीपु कामविवर्धनः॥ वृद्धि होती तथा मनुष्य अत्यन्त बलवान, कान्तिअभ्यासेन निहन्ति मृत्युपलितं सर्वामयध्वंसकः, युक्त और रूपवान हो जाता है। वृद्धानां मदनोदयोदयकरः प्रौढाङ्गनासङ्गमे । यह रस पुत्रहीन स्त्री तथा दुर्बल, क्षीण, नित्यानन्दकरः सुखाऽतिसुखदो भूपैः सदा | अल्पवीर्य और वृद्ध पुरुषोंके लिये अत्यन्त हित सेव्यते, कारी है । ओज, तेज और काम-शक्तिको दृष्टः सिद्धफलो रसायनवरः श्रीपूर्णचन्द्रो रसः।। बढ़ाता है। शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक २॥-२| तोले; इसके अभ्याससे पलितरोग नष्ट होता और लोहभस्म और अभ्रकभस्म ५-५ तोले; चांदी वृद्ध पुरुपेमें तरुणांके समान शक्ति आ जाती है। और बंगभस्म २॥-२॥ तोले; स्वर्ण भस्म, ताम्र- यह श्रेष्ठ रसायन और शीघ्र फल देनेवाला भस्म, कांसीभस्म, जायफल, लांग, इलायची, / अनुभूत प्रयोग राजाओंके सदैव सेवन करने भंगरा, जीरा, कपूर, फूलप्रियंगु और नागरमोथा, योग्य है। ११-११ तोला लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली (४४३४) पूर्णेन्दुरसः बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका महीन का महान (र. मं. । अ. ६; वृ. यो. त । त. १४७; चूर्ण मिलाकर सबको ग्वारपाठा, त्रिफला र. र.। वाजीकरणा.; यो. र. । रसायना.) और केमुक ( केऊआ ) के रसकी पृथक् पृथक् ! शाल्मल्युत्थैर्देवैमा पक्षकं शुद्धपारदम् ।। १-१ भावना देकर अरण्डके पत्तोंमें लपेटकर यामद्वयं पचेचाऽपि वस्त्रे बद्धाऽथ मर्दयेत् ।। अनाजके ढेर में दबा दें और फिर २४ घण्टे बाद दिनैकं शाल्मलीद्रावैर्मर्दयित्वा वटीकृतम् । पत्तोंमें से औषधको निकालकर खरल करके चनेके वेष्टयेन्नागवल्ल्याऽथ निक्षिपेत् काचभाजने ॥ बराबर गोलियां बना लें। भाजनं शाल्मलीद्रावैः पूर्ण यामद्वयं पचेत् । __इसे पानमें रखकर खानेसे समस्त रोग नष्ट वालुकायन्त्रमध्यस्थं द्रवे जीणे समुद्धरेत् ॥ होते हैं। द्विगुझं भक्षयेत्पात गवल्लीदलान्तरे । यह रस बल्य, रसायन और वाजीकरण है मुसलों ससितां क्षीरं पलैकं पाययेदन ॥ तथा अष्ठीलिका, खांसी, श्वास, अरुचि, आमशूल, रसः पूर्णेन्दुनामाऽयं सम्यग्वीर्यकरो भवेत् । कटिशूल, हृच्छूल, पित्तजशूल, अग्निमांद्य, अजीर्ण, । कामिनीनां सहस्रैकं नरः कामयते ध्रुवम् ॥ पुरानी संग्रहणी, आमवात, अम्लपित्त, भगन्दर - शुद्ध पारदको १५ दिन सेंभलके रसमें खरल कामला, पाण्डु, प्रमेह और वातरक्तका नाश | करें । तत्पश्चात् उसे वस्त्रमें बांधकर २ पहर तक करता है। यथाविधि दोलायन्त्र विधिसे संभलके रसमें स्वेदन For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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