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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .ग्सप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [४८९] विडंग, भंगरा, शुद्ध भिलावा, शुद्ध गन्धक, तुत्थ- इसे मिश्री और शहदके साथ सेवन करनेसे भस्म और पीपल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। पित्त शान्त होता है। इसमेंसे १ कर्ष औषधको त्रिफलाके काथमें मिला- | (४४०२) पित्तपाण्डुरिरसः (लोहगर्भरसः) कर रातके समय कान्तलोहके पात्रमें रख दें और (र. रा. मु.; र. का. । पाण्ड. र. र. स. । अ. १९) प्रातःकाल सेवन करें। इसके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ट नष्ट होते रसस्य भागाश्चत्वारो लोहस्याष्ट प्रकीर्तिताः । हैं । इसे ६ मास तक सेवन करनेसे पलितरोग वहिमुस्ताविडङ्गानां त्रिकटुत्रिफलस्य च ।। नष्ट हो जाता है । (व्यवहारिक मात्रा १ माशा) भागास्त्वनेकशो ग्राह्या कुटजस्य तथाऽपरः । चूर्णयित्वा ततः सर्व मधुना गुटिकाः किरेत् ।। पिण्डीरसः एकैकां भक्षयेत्मातः पित्तपाण्डपनुत्तये॥ कम्पवातहररस देखिये। पारद-भम्म ४ भाग, लोह-भस्म ८ भाग पित्तकासान्तकरसः तथा चीतामूल, नागरमोथा, बायबिडंग, सांठ, मिर्च, ( कासनाशनरसः, कासारिः, तिक्तत्रयरसः ) । पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला और कुड़ेकी छालका (ध.; र. र. र. चं.; र. रा. सु. । कासा.) चूर्ण १-१ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर 'त्रिनेत्रग्स' सं. २७२५ देखिये । शहदके साथ घोटकर ( ४-४ रत्तीकी ) गोलियां . (४४०१) पित्तकृन्तनो रसः बना लें। (र. चं.; र. प्र. सु. । पित्तरो.) इनमेंसे १-१ गोली प्रातःकाल सेवन करने मूतकश्च मृततारभस्मकं से पित्तजपाण्डु नष्ट होता है। गन्धकेन सहितं समांशकम् । (४४०३) पित्तप्रभञ्जनो रसः मर्दितं हि खलु भृङ्गवारिणा (र. चं. । पित्तरो.) चार्धयाममपि कुक्कुटे पुटे । प्रवालं माक्षिकं तुल्यं त्रिवारमार्दवारिणा । पाचितं हि सकलं विचूर्णितं मर्दितं दुग्धसितया सेव्यं पित्तनिवारणे ॥ लिहितं हि मधुशर्करायुतम् । मध्वाज्येन सितायुक्तं सेवितं वातपित्तनुत् । पित्तदोपशमनं मयोदितं पित्तकृन्तनमिदं प्रशस्यते ॥ पित्तप्रभञ्जनो योगः पित्तं नाशयति क्षणात् ।। शुद्ध पारा, चांदी भस्म और शुद्ध गन्धक | प्रवालभस्म और स्वर्णमाक्षिकभस्म समानसमान भाग लेकर कज्जली बवावें और उसे आधा | भाग लेकर दोनोंको अदरकके रसकी ३ भावना पहर भंगरेके रसमें खरल करके शराव सम्पुटमें बन्द | देकर सुरक्षित रखें । करके कुक्कुटपुटमें फूंकें। इसे मिश्रीयुक्त दूधके साथ सेवन करनेसे For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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