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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४८८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि पखानभेदका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटकर । (४३९९) पाषाणभेदी रसः (३) सुरक्षित रक्खें। (र. र. स. । अ. १७.) इसे ४ माशेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे | रसं द्विगुणगन्धेन मर्दयित्वा प्रयत्नतः । अश्मरी नष्ट होती है। वसुः पुनर्नवा वासा श्वेता ग्राहया प्रयत्नतः ॥ (व्यवहारिक मात्रा २-३ रत्ती । अनुपान | तवैर्भावयेदेनं प्रत्येकं तु दिनत्रयम् । कुलथीका काथ या पित्तपापड़ेका रस ।) पकं मूपागतं शुष्कं स्वेदयेज्जलयन्त्रतः॥ नोट-योगरत्नाकर आदिमें गन्धक तीन भाग तथा एक दिन पोटनेको लिखा है। एवं इसीको पाषाणवज्रनाम पाषाणभेदीनामायं नियुभीतास्य वल्लकम् । दिया है। किन्ही किन्ही ग्रन्थों में पाषाणभेदके स्थानमें | गोपालककेटीबीज भूम्यामलकमूलिकाम् ॥ गुड़ लिखा है । कुलत्थकाथतोयेन पिष्ट्वा तदनु पाययेत् ॥ (४३९८) पाषाणभेदी रसः (२) १ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध (र. र. स. । अ. १७) गन्धककी कजलीको सफेद और लाल पुनर्नवा रसेन सितवर्षाभ्वा रसं द्विगुणगन्धकम् । (साठी), बासा और सफेद कोयलके रसमें ३-३ घृष्टं पचेच मूषायां द्वौ माषौ तस्य भक्षयेत् ॥ दिन घोटकर मूषामें बन्द करें और उसे १ दिन गोपालकर्कटीमूलं कुलत्योदैः पिबेदनु । भाण्डपुटमें पकानेके पश्चात् जलयन्त्रमें स्वेदित गोकण्टकसदाभद्रामूलकाथं पिबेनिशि ॥ करके पोसकर सुरक्षित रखें। अयं पाषाणभिन्नामा रसः पाषाणभेदकः॥ इसमें से ३ रत्ती रस खिलाकर ऊपरसे गोपाल१ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध | कर्कटी के बीज और भुई आमलेकी जड़का चूर्ण गन्धककी कजलीको सफेद पुनर्नवा (साठी) के | कुलथी के काथके साथ पीनेसे अश्मरी नष्ट होती है। स्वरसकी १ भावना देकर शरावसम्पुटमें बन्द कर | के भाण्डपुटी में पकायें और फिर उसके स्वांग | (४४००) पिङ्गलेश्वररसः शीतल होनेपर उसमेंसे रसको निकालकर पीस लें।। (र. रा. सु.; र. का. । कुष्ठा.) ___ इसमेंसे २ माषा औषध खाकर ऊपरसे गोपाल- भस्ममृतं विषं शुण्ठी वचा वह्निः फलत्रिकम् । कर्कटी (जंगली ककड़ी) की जड़का चूर्ण कुलथीके | ब्रह्मवीजं विडङ्गानि भृङ्गिभल्लातगन्धकम् ॥ काथके साथ पीना तथा रात्रिको गोखरु और शिखितुत्थं कणातुल्यं सर्वमेकत्र मर्दयेत् । गम्भारीकी जड़की छालका काथ पीना चाहिये । त्रिफलाकाथसंयुक्तं कान्तपात्रे स्थितं निशि ॥ इसके सेवनसे पथरी टूटकर निकल जाती है। कर्षमात्रं लिहेल्मातः सर्वकुष्ठनिवृत्तये । (व्यवहारिक मात्रा-२-३ रत्ती।) | षण्मासात्पलितं हन्ति रसोऽयं पिङ्गलेश्वरः॥ १-भाण्डपुट- एक बड़ी सी हाण्डीमें धानकी भसी | पारदभस्म, शुद्ध बछनाग, सोंठ, बच, चीताभर कर उसके बीचमें सम्पुट रख कर पकावें । - । मूल, हर, बहेड़ा, आमला, पलाशके बीज, बाय For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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