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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः । चूर्ण करके उसे उपरोक्त कज्जली में मिलाकर सबको मिलाकर तीनोंको सफेद १ दिन नीबू के रसमें घोटकर रक्खें । स्वरसमें ३ दिन घोटकर इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार भोजन के अन्तमें शरावसम्पुट में बन्द करके खाना चाहिये । यह दीपन पाचन हृय और शीघ्र ही फल दिखलाने वाली औषध है । इसके सेवनसे विसूचिका शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । इसे उदररोगों में तालमूलीके रसके साथ; अतिसारमें मोचरसके साथ; संग्रहणीमें सेंधानमकमिश्रित तक्रके साथ; शूलमें सल, पीपर और Rich चूर्णके साथ; अर्श तकके साथ; राजयक्ष्मा में पीपरके चूर्णके साथ; वातव्याधिमें सेट और सञ्चलके चूर्णके साथ; पित्तरोगों में मिश्री और धनियेके चूर्णके साथ और कफज रोगों में पीपल के चूर्ण और शहदके साथ देना चाहिये । (४३९६) पाषाणभिन्नः ( र. र.; भै. र.; २. चं. | अश्मरी. ) शुद्धसूतं द्विधा गन्धं शिलाजतुरसः पलम् । श्वेतपुनर्नवावासारसैः श्वेतापराजितैः ॥ प्रतिद्रावैस्त्र्यहं म शुष्कं तद्भाण्डसम्पुटे । स्वेदयेद्दोलिकायन्त्रे संशुष्कं तद्विचूर्णयेत् ॥ रसः पाषणभिन्नः स्याद् द्विगुञ्जश्चाश्मरीं हरेत् भूधात्रीफलविशालां पिष्ट्वा दुस्खेन पाययेत् ॥ कुलत्थकाथसम्पीतमनुपानं मुखावहम् ॥ । शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग और शुद्ध शिलाजीत १ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धकको कज्जली बनावें फिर उसमें शिलाजीत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४८७ ] पुनर्नवा ( साठी ) के सुखा लें और फिर उसे दोलायन्त्र - विधिसे १ दिन पुनर्नवा रसमें पकावें । तदनन्तर उसे इसी प्रकार ३-३ दिन बासा और सफेद कोयलके रसमें घोटकर एक एक दिन इन्हींके रसमें दोलायन्त्रविधिसे खेदित करें। अन्तमें पीसकर सुखाकर सुरक्षित रखें । भुई आमला और इन्द्रायनकी जड़को दूधमें पीसकर उसमें २ रती यह रस मिलाकर रोगीको पिला दें और फिर उसके ऊपर कुलथीका काथ पिलावें । इसके सेवन से अश्मरी नष्ट होती है । (४३९७) पाषाणभेदी रसः (१) ( पाषाणवज्ररसः ) For Private And Personal Use Only ( रखें. चि. म. । अ. ९; र. सा. स.; र. रा. सु.; धन्व.; भै. र.; वृ. नि. र.; यो. र. र. च. । अश्म. ) ३ शुद्ध द्विधा पौनर्णवद्रवैः । भावना त्रितयं देयं रुद्धा तं भूधरे पुटेत् || पाषाणभेदी चूर्ण तु समं योज्यं विमर्दयेत् । निष्कमश्मरिकां हन्ति पूर्वोक्तादनुपानतः ॥ योगवाहान् प्रयुञ्जीत रसानश्मरिशान्तये ॥ १ भाग शुद्ध पारा और २ भाग शुद्ध गन्धकी कज्जलीको श्वेत पुनर्नवाके रसकी तीन भावना देकर शराव सम्पुटमें बन्द करके १ दिन भूधर यन्त्रमें पकावें । एवं उसके स्वांग शीतल होने पर उसमेंसे औषधको निकालकर उसमें उसके बराबर
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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