SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ४८६ ] (४३९४) पार्वतीरस: www.kobatirth.org भारत-भैषज्य - रत्नाकरः । (रसें. सा. सं.; र. रा. सुं. । मुख.; रसें. चि. म. ! अ. ९ ) पार्वती काशीसम्भूतो दरदो मधुपुष्पकम् । गुडूची शाल्मली द्राक्षा धान्यभूनिम्बमार्कवम् ॥ तिलमुद्गपटोलञ्च कूष्माण्डं लवणद्वयम् । यष्टिका धान्यकं भस्म चान्तर्दग्धं समं समम् ।। मुखरोगं निहन्त्याशु पार्वतीरस उत्तमः । पित्तज्वरं चिरं हन्ति तिमिरञ्च तृषामपि ॥ | शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारा, शुद्ध सिंगरफ, महुवेके फूल, गिलोय, संभलकी मूसली, द्राक्षा, धनिया, चिरायता, भंगरा, तिल, मूंग, पटोल, पेठा (कुम्हड़ा ), सेंधा नमक, कालानमक, मुलैठी और धनिये की अन्तर्धूमदग्ध ( बन्द बरतन में बनाई हुई ) भस्म समान भाग लेकर प्रथम पारेगन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिलाकर सबको अच्छी तरह घोटकर रख लें । इसके सेवनसे मुखरोग, पुराना पित्तज्वर, तिमिर और तृषाका नाश होता है । (४३९५) पाशुपतो रसः (पाशुपतास्त्ररसः ) ( यो. र.; वृ. नि. र. र. सा. सं.; र. रा. सु. । अजीर्ण.; यो. त. । त. २४; र. चि. म. । स्त. ११) शुद्धतं द्विधा गन्धं त्रिभागं तीक्ष्णभस्मकम् । त्रिभिः समं विषं देयं चित्रकक्काथभावितम् || बीजस्य भस्मापि द्वात्रिंशद्भागसंयुतम् । कटुत्रयं त्रिभागं स्याल्लवङ्गैला च तत्समम् ॥ [ पकारादि जातीफलं तथा कोषमर्द्धभागं नियोजयेत् । तथार्द्ध लवणं पञ्च स्तुार्कैरण्डतिन्तिडी ॥ अपामार्गाश्वत्थञ्च क्षारं दद्याद्विचक्षणः । हरीतकी यवक्षारं स्वर्जिका हिङ्गुजीरकम् ।। टङ्कणञ्च सुततुल्यं चाम्लयोगेन मर्दयेत् । भोजनान्ते प्रयोक्तव्यो गुआफलप्रमाणतः ॥ रसः पाशुपतो नाम सद्यः प्रत्ययकारकः । दीपनः पाचनो हृद्यः सद्यो हन्ति विसूचिकाम् || तालमूलीरसेनैव उदरामयनाशनः । मोचरसेनातीसारं ग्रहणी तक्रसैन्धवैः ॥ सौवर्चलकणाशुण्ठीयुतः शूलं विनाशयेत् । अर्शो हन्ति च तक्रेण पिप्पल्या राजयक्ष्मकम् ।। वातरोगं निहन्त्याशु शुण्ठीसौवर्चलान्वितः । शर्कराधान्ययोगेन पित्तरोगं निहन्त्ययम् ।। पिप्पलीक्षौद्रयोगेन श्लेष्मरोगञ्च तत्क्षणात् । अतः परतरो नास्ति धन्वन्तरिमतो रसः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, तीक्ष्ण-लोह भस्म ३ भाग और शुद्ध बछनाग ६ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें; फर उसमें अन्य दोनों ओषधियांका महीन चूर्ण मिलाकर सबको १ दिन चीतामूलके काथमें घोटें और फिर धतूरे के बीज की भस्म ३२ भाग; सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग और इलायची ३ - ३ भाग; जायफल और जावत्री आधा आधा भाग; पांचों नमक ( समान भाग मिश्रित ) २ ॥ भाग, तथा सेहुंड (सेंड --- थूहर ), आक, अरण्डमूल, तिन्तड़ीक, अपामार्ग (चिरचिटे ) और पीपलवृक्षका क्षार, हर्र, जवाखार, सज्जीखार, भुनी हुई हींग, जीरा और सुहागेकी खील १-१ भाग लेकर सबका बारीक For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy