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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। [४८५] सुहागेको १ दिन केलेकी जड़के रसमें, १ / काथमें घोटकर सुखाकर आतशी शीशी में भरदें दिन हल्दीके स्वरसमें और १-१ दिन हल्दी | और फिर उसे बालुकायन्त्रमें रखकर उसके तथा अपामार्गके क्षारजल में घोटकर उसमें उसका | नीचे १६ पहर अग्नि जलावें । तदनन्तर शीशीके तीसरा भाग शुद्ध हरितालका महीन चूर्ण मिलावें । स्वांगशीतल होने पर उसमेंसे औषधको निकाल और फिर दोनोंको ७-७ दिन पलाश पुष्प | कर इन्हीं चीज़ाके रस में घोटकर इसी प्रकार पुनः ( टेसू ) के स्वरस, आकके दूध और सफेद अर- १६ प्रहरकी अग्नि दें । इस प्रकार इन ण्डके बीजोंके स्वरस में घोटकर सुखाकर कपड़- चीजेांके रसमें घोटकर कुल ३ बार पकावें । मिट्टी की हुइ आतशी शीशी में भरकर उसे बालुका- तदनन्तर उसे प्याज, लहसन और मानकन्द यन्त्रमें रखकर उसके नीचे १२ पहर तक अग्नि के रसकी १-१ तथा शंखदावकी १९ भावना जलावें । तदनन्तर शीशीके स्वांग शीतल होनेपर | देकर १२ पहर तक बालुका यन्त्रमें पकावें । उसे सावधानी पूर्वक तोड़ लें । शीशीको कांच इसी प्रकार ३ बार पाक करनेके पश्चात् शीशीकी काटनेकी कलमसे तोड़ा जाय तो अच्छा है। तली में जो पदार्थ मिले उसे निकालकर सुरइसके भीतर सबसे ऊपर सत्व, बीचमें पुष्प और क्षित रख । नीचे किट मिलेगा । इनमें से किट्ट भागको छोड़ । इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार यथोचित अनुकर शेष दोनों भागोंको खरलमें डालकर पहिलेकी | योजनालका पहिली पानके साथ सेवन करनेसे स्वरभंग और क्षय भांति ही पलाश पुष्प के रसादि तीनों चीजोंमें | इत्यादि समस्त रोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाते हैं । ७-७ दिन घोटकर उसे उपरोक्त विधिसे १२ पहरकी अग्नि दें और फिर शीशीमें से सत्व तथा | (४३९३) पारिभद्रो रसः पुष्पको निकालकर इसी प्रकार घोटकर पुनः १२ / ( रसें. सा. सं.; र. रा. सु. । कुष्ठा. र. म. । पहर पकावें । अ. ६; रसें. चिं. म. । अ. ९) मूछितं सूतकं धात्री फलं निम्बस्य चाहरेत् । इस प्रकार ३ बार पाक करने के पश्चात् । सत्व और पुष्प के साथ तीसरे पाकके अन्तमें जो तुल्यांशं खादिरकाथैर्दिनं मर्यश्च भक्षयेत् ॥ के शीशीकी तलीमें मिले उसे भी मिला लें. निष्कैकं दुद्रुकुष्ठनः पारिभद्राहयो रसः ॥ और फिर तीनोंको खरलमें डालकर उसमें इन मूछित पारद (कजली ), आमला और सबसे चौथाइ शुद्ध शिंगरफ़ मिलाकर सबको १-१ नीमके फलेांकी मज्जा ( गिरी ) समान भाग लेकर दिन भांग, भंगरा, धमासा, धतूरा और पलाश- सबको १ दिन खैरके काथमें घोटकर ४-४ पुष्पके स्वरसमें तथा ७ दिन हर्रके स्वरस या | माशेकी गोलियां बना लें। इसके सेवनसे दाद और कुष्ठ नष्ट होता है। १-क्षारजल (क्षारोदक) बनाने की विधि भा. भै. र. भाग के पृष्ठ ३५३ पर देखिये । ( व्यवहारिक मात्रा-६ रत्ती ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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