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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] तृतीयो भागः। [४८३] - - - - - (४३८८) पारदादिवटी (१) । | (४३८९) पारदादिवटी (२) ( सिद्धभेषजमणिमाला । ग्रहण्य.) (र. रा. सु.; वृ. नि. र. । ग्रहणी.) शुद्ध शिवांशमेकांशमेकांशं फणिफेनकम् ।। पारदं गन्धकं तारममृतं चानु शुल्वकम् । दुर्थशं गन्धमिति त्रीणि पिष्टवा कुर्वीत पर्पटीम्॥ त्रिफला त्रिसुगन्धं च चित्रकोशीररेणुकाः ॥ विषमुष्टिकधत्तूरबीजजातीफलान्यपि। रजनी द्वयसंयुक्तं सम्पेष्य वटकीकृतम् । एकांशानि पृथक्तत्र दत्त्वा ममुणतां नयेत् ॥ | ग्रहण्यष्टविध शूलं शायातासारनाशनम् ।। दाडिमीतिन्तिडीतोयैर्भावयेत्सप्तधा पृथक् । शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, चांदीभस्म, शुद्ध वटीनीत जरणक्षौदैस्ता ग्रहणीच्छिदः ।। बछनाग, ताम्रभस्म, हर्र, बहेड़ा, आमला, तेजपात, शुद्ध पारा १ भाग और शुद्ध गन्धक २ दालचीनी, इलायची, चीतामूल, खस, रेणुका, हल्दी भाग लेकर दोनोंकी कजली बनाकर उसमें १ . और दारु हल्दीका चूर्ण समान भाग लेकर प्रथम भाग अफीम डालकर अच्छी तरह घोटें और फिर पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर उसमें | अन्य ओषधियांका चूर्ण मिलाकर सबको पानी उसे लोहेकी करछीमें डालकर मन्दाग्नि पर पकावें जब वह पिघल जाय तो उसकी यथाविधि पर्पटी | आदिके साथ घोटकर (१-१ माशेकी) गोलियां बना लें। बना लें। इनके सेवनसे आठ प्रकारकी ग्रहणी, शूल, (भूमिपर ताज़ा गोबर फैलाकर उसपर केले शोथ और अतिसारका नाश होता है । का पत्ता बिछा दें और उसके ऊपर वह पिघली (नोट-यदि अजवायनके काथके साथ घोटहुई कज्जली फैलाकर उसे दूसरे पत्ते से ढक दें कर गोलियां बनाई जावें और उसीके साथ खिलाई और फिर उसके ऊपर ताजा गोबर डालकर उसे दबा दें। तथा स्वांग शीतल होने पर दोनों जावें तो शीघ्र लाभ होगा।) पत्तेके बीचमेंसे पर्पटीको निकाल लें। (४३९०) पारदादिवटी (३) तदनन्तर इस पर्पटीको पीसकर उसमें १-१ (वृ. नि. र. । श्वास.) भाग शुद्ध कुचला, धतूरेके बीज और जायफलका पारदं गन्धक नागं तानं व्योषानलैः समम् । चूर्ण मिलाकर खूब घोटें । जब वह अत्यन्त महीन स्वीरसेन सञ्चूर्ण्य प्रदेया भावना दश ॥ हो जाय तो उसे अनारकी छाल या फूलेके स्वरस पुनः पर्णरसैः सम्यक् चाकस्य रसैस्तथा । और तितडीकके पानीको पृथक् पृथक् ७.-७ भावना | मिरिप्रमाणा कफजित् कार्या सा गुटिकोत्तमा । देकर (१-१ रत्तीकी ) गोलियां बना लें। मन्दाग्निकफरोगेषु श्वासकासे विशेषतः । इन्हें जीरेके चूर्णमें मिलाकर शहदके साथ । आध्मानपतिनाहेषु प्रदेया सुखकारिणी॥ चटाने से संग्रहणी नष्ट होती है। शुद्ध पारा, शुद्र गन्धक, सीसाभस्म, ताम्र For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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