SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४७४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ पकारादि (४३६०) पारदशोधनम् (२) । (४३६२) पारशोधनम् (४) (र. सा. सं. । पूर्वखण्ड) (र. सा. सं. । पूर्वखण्ड) जयन्त्या वर्द्धमानस्य चाकस्य रसेन च। रसम्य द्वादशांशेन गन्धं दत्त्वा विमर्दयेत् । वायस्याश्चानुपूर्येण मर्दनं रसशोधनम् ॥ जम्बीरोत्/ वैर्याम पाच्यं पातनयन्त्रके ॥ एषां प्रत्येकशस्तावन्मदयेत्स्वरसेन च । | पुनर्मघे पुनः पाच्य सप्तवार विधानतः ॥ यावच्च शुष्कतां याति सप्तवारं क्रमेण च ॥ | पारदमें उसका बारहवां भाग गन्धक मिलाउद्धत्योष्णारणालेन मृद्भाण्डे क्षालयेत्सुधीः। कर कजली बनावें और फिर उसे १ पहर तक सर्वदोष विनिर्मुक्तः सप्तकञ्चुकवर्जितः॥ नीबूके रसमें घोटकर ऊर्ध्वपातन यन्त्र द्वारा उड़ा जायते शुद्धसूतोऽयं युज्यते सर्वकर्मसु॥ | लें । इसी प्रकार गन्धकके साथ घोट घोटकर __पारदको जयन्ती, अरण्ड, अदरक और मकोय सात बार उड़ानेसे पारद शुद्ध हो जाता है । के रसमें क्रमशः पृथक् पृथक् सात सात बार घोटकर | (४३६३) पारदशोधनम् (५) सुखा लें । तदनन्तर उसे मिट्टीके पात्रमें डालकर (र. सा. सं. । पूर्वखण्ड ) गर्म काजीसे धो डालें तो पारद सप्त कञ्चुकी और कुमा- च निशाचूर्णैर्दिनं सूतं विमर्दयेत् । सर्वदोष रहित हो जाता है । इसे समस्त योगोमें पातयेत्पातनायन्त्रे सम्यक् शुद्धो भवेद्रसः ॥ डाल सकते हैं। नोट-पारदको हर बार धोटकर सुखाकर ___ पारदमें उसका सोलहवां भाग हल्दीका काञ्जीसे धोना चाहिये अर्थात उक्त ४ ओषधियों चूर्ण मिलाकर दोनोंको १ दिन ग्वारपाठा के के रसमें २८ बार घोटकर सुखाना और २८ बार रसमें घोटकर उर्ध्वपातनयन्त्र द्वारा उड़ानेसे वह काजीसे धोना पड़ेगा। शुद्ध हो जाता है। (४३६१) पारदशोधनम् (३) (४३६४) पारदशोधनम् (६) (र. सा. सं. । पूर्वखण्ड) (र. सा. स. । पूर्वखण्ड ) रसोनस्वरसैः सूतः नागवल्लीदलोत्थितैः । श्रीखण्डं देवकाष्ठश्च काकजङ्घा जयाद्रवैः । त्रिफलायास्तथा काथे रसो मर्यः प्रयत्नतः ॥ कर्कटीमूषलीकन्याद्रवं दत्त्वा विमर्दयेत् ।। ततस्तेभ्यः पृथक् कृत्वा मूतं प्रक्षाल्य काञ्जिकैः । दिनैकं पातयेत्पश्चात्तं शुद्धं विनियोजयेत् ॥ सर्वदोषविनिर्मुक्तं योजयेद्रसकर्मम् ॥ ____पारदको १-१ दिन क्रमशः लहसन और पारदको सफेद चन्दन, देवदारु, काकजंघा, पानके स्वरस तथा त्रिफलाके काथमें घोटकर काञ्जी जयन्ती, बांझककोड़ा ( या देवदाली--बिंडाल ), से धो डालें । इस क्रियासे पारद सर्वदोषरहित शुद्ध । मूसली और ग्वारपाठामें से जिन के स्वरस मिल हो जाता है। सकें उनके स्वरसके और शेष द्रव्योंके काथके For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy