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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। [४७३] पलकों पर लेप करनेसे पलकेकि बाल गिरने बन्द । एवं निपत्य यात्यूर्व रसो दोषविवर्जितः । हो जाते हैं। अयोर्ध्वपिठरीमध्ये लग्नो ग्राह्यो रसोत्तमः ।। (४३५८) पारदविकारहरो योगः ___ समान भाग राई और ल्हसनको एकत्र कूट(र. रा. सु । पूर्व ख.) कर उसकी मूषा बनावें और उसमें पारा डालकर | उसे कपड़ेमें बांधकर ३ दिन तक दोलायन्त्र विधि विकारा यदि जायन्ते पारदान्मलसंयुतान् । से काजीमें स्वेदित करें । तत्पश्चात् उस पारदको गन्धकं सेवयेद्धीमान् पाचितं विधिपूर्वकम् ॥ ।। १-१ दिन ग्वारपाठाके रस, चीतेके काथ, मकोय ___अशुद् पारद सेवनसे उत्पन्न हुवे विकार शुद्ध के रस और त्रिफलाके काथमें पृथक् पृथक् घोटकर गन्धक सेवन करनेसे नष्ट हो जाते हैं। काजीसे अच्छी तरह धो डालें । तदनन्तर उसमें (४३५९) पारदशोधनम् (१) उससे आधा सेंधा नमकका चूर्ण मिलाफर १ दिन (आ. वे. प्र. । अ. १; शा. ध. । खं. २ अ. १२) | नीबूके रसके साथ घोटें । तत्पश्चात् उसमें पिसी हुई राई, ल्हसन और नवसादर समान-भाग-मिश्रित राजीरसोनमूषायां रसं क्षिप्त्वा विवन्धयेत् । पारदके बराबर मिलाकर १ दिन काजीके साथ वस्त्रेण दोलिकायन्त्रे स्वेदयेत्काअिकैस्म्यहम् ॥ घोटें और फिर उसकी गोल टिकिया बनाकर दिनैकं मर्दयेत्पश्चात् कुमारीसम्भवैवैः ।। सुखा लें और उनके ऊपर होगका लेप कर दें। तथा चित्रकजैः काथैमर्दयेदेकवासरम् ॥ तत्पश्चात् उन्हें एक हांडीमें रखकर उसे नमकसे काकमाचीरसैस्तद्वदिनमेकं तु मर्दयेत् । भर दें और उसके ऊपर दूसरी हांडी उलटी रखकर त्रिफलायास्ततः काथै रसो मद्यः प्रयत्नतः ॥ दोनोंकी सन्धिको गुड़चूने आदिसे बन्द कर दें ततस्तेभ्यः पृथक्कुर्यात् मूतं प्रक्षाल्य काजिकैः। और सुखाकर इस यन्त्रको चूल्हे पर रखकर इसके ततः क्षिप्त्वा रसं खल्वे रसादधं च सैन्धवम् ॥ नीचे ३ पहर तक तीवाग्नि जलावें । इस बीचमें ऊपर मर्दयेनिम्बुकरसैदिनमेकमनारतम् । की हांडी पर भीगा हुवा कपड़ा रक्खे रहना ततो राजी रसोनश्च मुख्यश्च नवसागरः ॥ चाहिये और उसे बार बार बदल कर ऊपर वाली एतै रससमैस्तद्वत् सूतो मर्यस्तुपाम्बुना। हांडीको ठण्डा रखना चाहिये । ततः संशोष्य चक्राभं कृत्वा लिप्त्वा च हिङ्गना।। ३ पहर बाद यन्त्रके स्वांग शीतल होनेपर द्विस्थालीसम्पुटे धृत्वा पूरयेल्लवणेन च । । जोड़को आहिस्तासे खोलकर ऊपर वाली हांडीमें अधः स्थाल्यां ततो मुद्रां दधादृढतरां बुधः ॥ | लगे हुवे पारेको सावधानीपूर्वक छुड़ा लेना चाहिये। विशोष्यामिं विधायाधो निषिश्चेदम्बु चोपरि। यह पारद सर्व-दोष-रहित और अत्यन्त ततस्तु दद्यात्तीवाग्निं तदधः प्रहरत्रयम् ॥ शुद्ध होगा । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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