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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [४७५] साथ १-१ दिन घोटकर ऊर्ध्व पातनयन्त्रसे उड़ा , भेद ), नागबला ( गंगेरन ), चौलाई, बिसखपरा लें । इस क्रियासे पारद शुद्ध हो जाता है। ( साठी ), मेढासिंगी, चीता और नसदर समान (४३६५-४३७९ ) पारदसंस्काराः | भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर या पृथक् (र. चं.; र. रा. सु.) पृथक् काजीमें पीस लें और फिर उस कल्कका एक वस्त्र पर १ अंगुल मोटा लेप करदें । तत्पस्वेदनं मर्दनञ्चैव मूच्छनोत्यापने तथा । श्चात् इस वस्त्रमें पारदकी पोटली बनाकर उसे पातनं रोधनं चैव नियामनमतः परम् ॥ | दोलायन्त्र विधिसे ३ दिन तक काञ्जीमें पकावें । दीपनं चेति संस्काराः मृतस्याष्टौ प्रकीर्तिताः। इसीका नाम स्वेदन संस्कार है। पारदके ८ संस्कार होते हैं यथा:-स्वेदन, पारदस्वेदनम् (आ) मर्दन, मूर्छन, उत्थापन, पातन, रोधन, नियामन ( भा. प्र. । प्र. खं) और दीपन संस्कार । मूलकानलसिन्धूत्यत्र्यूषणाकराजिकाः । (यह आठो संस्कार क्रमपूर्वक करनेसे पारद | रसस्य पोडशांशेन द्रव्यं युझ्यात्पृथक पृथक् ॥ सर्वदोष-रहित हो जाता है। नीचे इन | | द्रवेष्वनुक्तमानेषु मतं मानमितं बुधैः । आठांका यथाक्रम वर्णन किया जाता है । जो वैद्य | पट्टाहतेषु चैतेषु मूतं पक्षिप्य काञ्जिके । यह आठो संस्कार न कर सकें वे पीछे बतलाई । | स्वेदयेदिनमेकञ्च दोलायन्त्रेण बुद्धिमान् । हुई पारद--शोधन की किसी विधिसे पारद शुद्ध स्वेदात्तीवो भवेत्सूतो मर्दनाच मुनिर्मलः॥ करके काम चला सकते हैं। मूली, चीता, सेंधानमक, सांठ, मिर्च, पीपल, अदरक और राई; इनमें से हरेक पदार्थ पारेका (१) पारदस्वेदनम् ( अ ) सोलहवां भाग लें, क्यों कि पारद-शोधनमें जहां ( भा. प्र. । प्रथम खं.) ओषधियोंका परिमाण न बतलाया हो वहां हरेक श्रूषणं लवणं राजी रजनी त्रिफलार्द्रकम् । पदार्थ पारदसे सोलहवां भाग लेनेका नियम है। महाबला नागबला मेघनादः पुनर्नवा ॥ तदनन्तर इन सब चीजोंको कानीमें पीसकर एक मेषभनी चित्रकच नवसारं समं समम् ।। कपड़ेपर लेप कर दें और उसमें पारद को बांधकर एतत्समस्तं व्यस्तं वा पूर्वाम्लेनैव पेषयेत् ॥ १ दिन दोलायन्त्र-विधिसे काजीमें पकावें । पलिम्पेत्तेन कल्केन वस्त्रमङ्गुलमात्रकम् ।। स्वेदन करनेसे पारद तीव्र और मर्दन करनेसे | निर्मल होता है। तन्मध्ये निक्षिपेत्सूतं बद्धा तत्रिदिनं पचेत् ।। पारदस्वेदनम् (इ) दोलायन्त्रेऽम्लसंयुक्ते जायते स्वेदितो रसः ॥ (र. रा. सु. । पूर्वखण्ड; रसें. चि. म. । अ. ३) . सांठ, मिर्च, पीपल, सेंधानमक, राई, हल्दी, रसं चतुर्गुणे वस्त्रे बद्धा दोलाकृतं पचेत् । हर, बहेड़ा, आमला, अदरक, महाबला ( खरैटी- दिन व्योषवरावहिकन्याकल्केषु कालिके ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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