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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। [ ४६९] तोले, घरका धुवां ११ तोला तथा शुद्ध सफेद | पारद भस्म निकालकर सुरक्षित रक्खें । यह योगसंखिया १॥ माशा लेकर प्रथम पारे गन्धकको | वाही भस्म सर्वरोग-नाशक है । कज्जली बनावें तत्पश्चात् उसमें अन्य चीजें मिला ( मात्रा–१ रत्ती) कर सबको १ दिन अनारके फूलोंके रसमें घोट (४३५४) पारदभस्मविधिः (१७) कर उसे जलयन्त्रमें रखकर मुद्रा बन्द कर दें और उसे पानीमें रखकर उसके नीचे ८ दिन तक (पीतभस्म ) क्रमशः मृदु मध्यम और तीन अग्नि जलावें । ( वृ. नि. र. । आमवा.) तदनन्तर यन्त्रके स्वांग शीतल होने पर उसमें से | शरावनिहितं सूतं द्विगुणवर्ष मूहुर्मुहुः । पारदभस्मको निकालकर सुरक्षित रखें । दत्त्वाग्निं सूर्ययामान्तं निम्बकाष्ठेन घट्ठयेत् ।। इसमें से नित्य प्रति १ रत्ती रस पानमें एवं भवेत्पीतवर्णा रसराजस्य भूतिका । खाकर ऊपरसे मिश्रीयुक्त दूध पीने और खटाई, यथानुपानं रोगेषु पदद्यात् भिषगुत्तमः॥ उर्द तथा लवण रहित भोजन करनेसे मनुष्य सर्व- अर्जितं विविधोपार्जङ्गमाद्भिपजान्मया । रोगरहित हो जाता है। इदं तत्त्वं प्रलब्धं तु पालनीयं चिकित्सकैः ॥ (४३५३) पारदभस्मविधिः (१६) । १ भाग शुद्ध पारा और २ भाग शुद्ध बंग को एकत्र मिलाकर मिट्टीके पात्रमें डालकर चूल्हे ( तलभस्म) पर रक्खें और उसके नीचे १२ पहर अग्नि जलावें (र. रा. मु.) तथा उसे निरन्तर नीमके सोटेसे घोटते रहें । इस गन्धकं नवसारं च शुद्धसूतं समं त्रयम् । । | क्रियासे पारदको पीतवर्ण भस्म बन जाती है। यामैक चूर्णयेत्खल्वे काचकुप्यां विनिक्षिपेत् ॥ | इसे यथोचित अनुपानके साथ देनेसे समस्त रुध्वा द्वादशयामान्तं बालुकायन्त्रगं पचेत् । | रोग नष्ट होते हैं । यह विधि एक महान वैद्यसे स्फोठयेत्स्वागशीतं तवं गन्धकं क्षिपेत् ॥ बड़े यत्नसे प्राप्त हुई है। तलमस्मरसो योगवाही स्यात्सर्वरोगहृत् । । (मात्रा-१ रत्ती ।) शुद्ध गन्धक, नौसादर और शुद्ध पारद | (४३५५) पारदभस्मविधिः (१८) समान भाग लेकर तीनोंको १ पहर तक निरन्तर खरल करके कपड़मिट्टी की हुइ आतशी शीशी में (पीतभस्म ) भरकर उसका मुख बन्द करदें और उसे १२ | (र. रा. सु.) पहर तक बालुकायन्त्रमें पकावें । तत्पश्चात् । भूधात्रीहस्तिशुण्डीभ्यां रसगन्धं च मर्दयेत् । शीशीके स्वांग शीतल होने पर उसे फोड़कर | काचकुप्यां चतुर्यामं पकः पीतो भवेद्रसः॥ ऊपर वाले गन्धकको अलग करदें और नीचे से पारे गन्धककी कजलीको १-१ दिन भुई For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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