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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [४६८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि (४३५१) पारदभस्मविधिः (१४) | इसके पश्चात् शीशीके स्वांग शीतल होने पर उसे ( भा. प्र. । प्र. खं.; शा. ध. सं. । फोड़कर ऊपरके भागमें लगे हुवे गन्धकको अलग खं. २ अ. १२) कर दें और नीचेकी भस्मको निकालकर सुर क्षित रक्खें। धूमसारं रसं तुवरी गन्धकं नवसादरम्। यामक मर्दयेदरलैर्भागं कृत्वा समं समम् ।। इसे यथोचित अनुपानके साथ सेवन कराने काचकूप्यां विनिक्षिप्य ताश्च मृदस्खमुद्रया। से समस्त रोग नष्ट होते हैं । विलिप्य परितो वक्त्रे मुद्रां दत्त्वा विशोषयेत् ॥ ( मात्रा--१ रत्ती ।) अधः सच्छिद्रपिठरीमध्ये कूपी निवेशयेत् । । (४३५२) पारदभस्मविधिः (१५) पिठरी वालुकापूरै त्वा चाकूपिकागलम् ॥ (तलभस्म) निवेश्य चुल्ल्यां तदधो वहिं कुर्याच्छनैः शनैः। (वृ. यो. त. । त. ४२) तस्मादप्यधिक किश्चित्पावकं ज्वालयेत्क्रमात् ।। एवं द्वादशभिर्यामैम्रियते रस उत्तमः। सूतश्चतुष्पलमितः समशुद्धगन्धः स्फोटयेत्स्वाङ्गशीतं तमूर्द्धगं गन्धकं त्यजेत् ।। | स्यामसारपिचुरेकमिदं क्रमेण । अवस्थश्च मृतं मृतं गृह्णीयात्तं तु मात्रया। | सम्मर्दयेद्विमलदाडिमपुष्पतोये यथोचितानुपानेन सर्वकर्मसु योजयेत् ॥ घस्र विमिश्रय सितसोमलमापकेण ।। ___घरका धुवां, शुद्ध पारा, फिटकी, शुद्ध एतभिधाय सकलं जलयन्त्रगर्भ सम्मद्रय सन्धिमुदितेन पुरा क्रमेण । गन्धक और नौसादर समान भाग लेकर प्रथम | आपूर्य यन्त्रमुदकेन दिनानि चाष्टी। पारे गन्धककी कजली बनावें फिर उसमें अन्य वन्हि क्रमेण तदधो विदधीत विद्वान् ॥ ओषधियोंका महीन चूर्ण मिलाकर सबको १ पहर सक नीबू आदिके रस में घोटकर सुखाकर उसे पश्चाच तज्जलमुदस्य रसं तलस्थ मादाय भाजनवरे सुभिषनिदध्यात् । कपरौटी ( कपड़मिट्टी ) की हुई आतशी शीशीमें भर दें और एक हाण्डीकी तलीमें छोटासा (पैसेके सम्पूज्य शम्भुगिरिजागिरिजातनूज मधाच्छुभेऽहनि रसं वरमेकगुनम् ।। बराबर ) छिद्र करके उसमें इस शीशीको रखकर हण्डीमें रेत भर दें । रेत शीशीके गले तक आ | ताम्बूलिकादलयुतं ससितं पयोऽनु जाना चाहिये । तदनन्तर शीशीके मुखमें खिरिया | पीत्वाऽम्लमाषलवणे रहितं सदभम् । मिट्टी आदिका डाट लगाकर उसे भट्टी पर चदादें अधात्कियन्त्यपि दिनानि ततो यथेच्छ और उसके नीचे मन्दाग्नि जलावें तथा धीरे धीरे । भक्ष भजेदय नरो विगतामयः स्यात् ॥ अमिको तेज करते हुवे १२ पहरकी आंच दें। शुद्ध पारद २० तोले, शुद्ध गन्धक २० For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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