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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसाकरणम्] तृतीयो भागः। [४५९] पुनईलाकरणेप्ययं स्यात् तारोंके छीकेमें रखकर मजबूतीके साथ बांध दे बहुपयोगी प्रबलप्रभावः॥ जिसमें कुण्डी टेढी होकर पारद कुण्डेमें गिर न पण्मासान् रसराजस्य स्वेदनं पावकोष्मतः। जाय । परन्तु यह भी स्मरण रहे कि पारदको भविषायूष्मतश्चैव हेमनासाय जायते ॥ चार तह कपड़ेमें बांधकर रखे, और कुण्डेके ऊपर सुगमरीतिसे पारदकी बितीय अपने मुख आदि अङ्गको न ले जाय, नहीं तो बुभुक्षा विधि: विष क्षार आदि की ऊष्मासे मुख जल जायगा । अर्थ-कुम्हारसे एक ऐसा कुण्डा ( हौद ) | उस छीकेको दोलायन्त्रविधिसे कुण्डे के मध्य बनवावे जिसमें पांच मन पानी अट जाय; उसको भागमें लटकादे और कुण्डेके मुखपर उसके मापकी बोरीके टाटसे मढदे और सूजा (सूआ ) सुतलीसे | शिला रखकर मुद्रा करदे । अर्थात् कुण्डे और शिला सीमकर मजबूत करदे और उसके ऊपर एक की दर्ज को चारों तरफसे बाल रेती मिली हुइ, कपरमट्टी भी चढ़ाकर सुखा ले । बाद एक चिकनी मट्टीसे ल्हेसदे, जिसमें कुण्डेकी उष्मा बाहर ऐसा गढ़ा खोदे जिसमें वह कुण्डा आ जाय । नहीं निकलने पावे । उस मट्टीके ऊपर एक कपरउस गढ़ेमें कुण्डेको गले तक गाढ़ कर चारों तरफके मट्टी और करदे इस गढ़ेके इधर उधर भवकाशको मट्टीसे अच्छी तरहसे भरकर ठस करदे, कोनोंपर दो गजपुट बनादे जिनमें अभ्रक लोह बाद उस कुण्डेमें पारदके बुभुक्षित करनेवाली आदिके हमेशा पुट लगते रहे जिससे उनकी अग्नि आगे लिखी हुइ चीजोंको भरदे । दश सेर की ऊष्मा कुण्डेमें पहुंचती रहे । और उस शिलाके बनाम विष, पांच सेर सींगिया विष, पांच सेर ऊपरभी दश बारह सेर गोइठाकी अग्नि लगादे, और हल्दीया विष, (किसीको अन्य भी विष यदि मिल | जब अग्नि निर्धमप्राय हो जाय तब अग्निको लोह सकें तो वे भी दो दो सेर डालने चाहियें ) बीस की नांदसे ढक दे । यदि मट्टीकी नांदसे ढकना सेर प्याज, पांच सेर लशुन, बीस सेर सेंधा- हो तो उस के किनारेपर लोहेके तारेसे चार पांच नॉन, पांच सेर नीबूका रस, दश सेर धतूरेका लपेटा देकर बांध दे, और तीन चार कपरमट्टी भी पञ्चाङ्ग (फल पुष्पादि), पांच पांच सेर सेहुंड कर दे, जिसमें नांद अग्निकी तेजीसे फूटने नहीं भौर मंदारकी जड़, सज्जी, जवाखार, कलमीसोरा, पावे । अग्निको नांदसे ढकने का यह अभिप्राय है बूंघची, दो दो सेर । इन चीजोंमें जो कूटने योग्य कि आग जल्दी बुझे नहीं । परन्तु इस नांदके तल वस्तु हैं उनको कूटकर अन्य वस्तुओंको योही भागमें इतना बड़ा छिद्र भी करदे कि जिसमें होकर भरकर बाकी बचे हुवे कुण्डेको गोमूत्रसे भरकर रुपया निकल जाय । छिद्र करनेका यह अभिप्राय है लकड़ीसे सब चीजोंको चला दे, जिसमें सब चीज कि इस छिद्रके द्वारा वायुका सञ्चार रहनेसे अग्नि मिल जायं बाद हिंगुलोत्थ एक सेर पारद | बुतने नहीं पावे, परन्तु यह भी स्मरण रहे कि को पत्थरकी कुण्डीमें भरकर उस कुण्डीको लोहेके | शिलाके ऊपर पांचसेर मट्टी बिछा कर गोइठे मुल For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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