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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४६०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [पकारादि गावे, नहीं तो शिला फूट जायगी इस | तोले दो तोले बच रहे तो पूर्वोक्त विधिके अनुगढ़े तीसरे कोने पर चन्द्रोदयादि रसेांकी भट्टी | सार क्षारवर्ग और अम्लवर्गमें स्वेदन मर्दन करके भी जारी रहे जिसमें भट्टीकी ऊष्मा भी कुण्डेमें | उस अवशिष्ट सुवर्णको भी पचा दे यदि पहुंचती रहे, अर्थात् गढ़ेके दो कोनों पर गजपुटांकी | कपड़ेमें सुवर्णकी गोली नहीं बचे तो उस पारद आंच कुण्डेमें लगती रहेगी, तीसरे कोने पर भट्ठी- | को डमरूयन्त्रमें रखकर दो पहरकी आंच देकर की आंच पहुंचती रहेगी, चौथा कोना खाली रहेगा, परीक्षित करले । यदि डमरुयन्त्रकी नीचेकी हांडी और मुखपर ढकी हुई शिलापर सुलगे हुवे गोइ- में दो चार मासे सुवर्ण रह जाय तो उसको भी ठेकी आंच लगती रहेगी, और कुण्डेके तलभागमें | उक्त विधिके अनुसार क्षाराम्लवर्गमें स्वेदन मर्दन पृथ्वीकी गरमी रहेगी और कुण्डेके अन्दर विष | करके पचा दे यदि डमरूयन्त्रकी नीचेकी और क्षारांकी अग्नि भबकती रहेगी इस हांडीमें बिलकुल सुवर्ण नहीं बचे तो उसको तौल प्रफार छः महीने तक रसायनशलाका कार्य जारी करके भी परीक्षा करले कि स्वर्णग्रास देनेसे पहिले रखनेसे सैकड़ों रस भी तैयार हो जायंगे और जितना भार पारदका था, उतनाही ग्रासके पचनेपारद तो बिना ही परिश्रम अपने आप बुभुक्षित पर मिले तो निश्चय करले कि यह पारद अत्यन्त हुवा पावेगा । अर्थात् सर्च धातुओंकी भस्म तथा बुभुक्षित हो गया है । तब वक्ष्यमाण विधिक सिन्दूरादि रस बनानेके लिये छः महीने तक कार्या- | अनुसार इसका चन्द्रोदय बनावे और कुण्डेमें रम्भ किया गया है, परन्तु पारद बुभुक्षित करनेके | जितना सामान ( विषादिका कल्क ) बचा लिये कोई नवीन क्रिया नहीं करनी पड़ती। हुआ है उस सबका भी क्षार बनाकर रख ले । छः महीनेके बाद कुण्डेकी मुद्राको खोलकर बहुत | यह भी एक प्रकारका “ बिड" तैयार होजायगा, होशियारीके साथ कुण्डेमें लटकते हुवे पारदके | जो कि पुनः पारदबुभुक्षाविधिमें अत्यन्त उपयोगी शिक्य ( छीके ) को निकालकर पारदको निकाल | उग्रप्रभाव होगा। ले । परन्तु यह स्मरण रहे कि मुद्राको खोलते- सारांश यह हुआ कि छ: महीने तक उक्तसमय आंख नाक को बचावे, नहीं तो कुण्डेसे | विधिके अनुसार अग्निकी ऊष्मा पृथ्वीकी ऊष्मा बहुत तेजीके साथ ऊष्मा (भाफ) निकलकर | तथा बिषादिकी ऊष्मासे पारदका स्वेदन करनेसे अवश्य अङ्गभङ्ग कर देगी । इस पारदको तौलकर | वह सुवर्णग्रासके योग्य होता है। देख ले, यदि तीन पाव पारद हो तो चतुर्थांश (४३३७) पारदस्य प्रचण्डबुभुक्षातृतीय (तीन छटांक) शास्त्रोक्त विधिसे शोधे हुवे सुवर्ण विधिः का ग्रास देकर मर्दन करें जब पारदमें (रसायनसार.) सुवर्ण लीन हो जाय तब उसको कपड़ेमें छान श्यामाभ्रक हाटकमाक्षिकश्च कर परीक्षा करे, यदि कपड़ेमें सुवर्णकी गोलीसी । द्वयेकांशकं सत्वमुतापि भस्म For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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