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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] सतीयो भागः। [४१९] कर सबको १ दिन सेंड ( सेहुंड-थोहर ) के | तदा तु पञ्चामृतपर्पटीति दूधमें घोटकर ( २-२ रत्तीकी ) गोलियां बनालें। स्मृतं ज्वराशेषविशेषहारि । इन्हें आमलेके रसके साथ सेवन करनेसे | कासक्षयार्ध्वग्रहणीगदनं । रक्तगुल्म नष्ट होता है। वल्लद्वयं क्षौद्रकणावलीढम् ॥ दवा खाकर ऊपरसे इमलीके पत्तोंका रस ताम्रभस्म, शुद्ध पारा, सीसाभस्म, लोहभस्म पीना चाहिये। और बंगभस्म १-१ भाग तथा शुद्ध गन्धक सबसे २ गुना लेकर प्रथम पारे गन्धकको कज्जली पथ्य-दही भात । बनावें फिर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर खूब (४२८०) पञ्चामृतचूर्णम् घोटें । तत्पश्चात् एक लोहेके पात्रमें जरासा घी (र. र. । अजीर्णा.) चुपड़ कर उसमें इस कज्जलीको मन्दाग्नि पर पारद गन्धकं लौह ताम्रमभ्रकमेव च। पिघलावें और फिर उसे गायके ताजे गोबर पर एषां माषकमेकैकं जम्बीरद्वभावितम् ॥ | केलेका पत्ता बिछाकर उसपर फैला दें और जल्दीसे देयं त्रिकटुना तुल्यं सम्पगुनाचतुष्टयम् । उसके ऊपर दूसरा पत्ता ढककर उसे गोबरसे दबा दें। तमतोयानुपानेन वहिमान्यहरं परम् ॥ जब स्वांगशीतल हो जाय तो पर्पटी को निकाल शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, ताम्र कर सुरक्षित रक्खें। भस्म और अभ्रकभस्म १-१ माषा लेकर कज्जली । इसे ६ रत्तीकी मात्रानुसार पीपलके चूर्ण बनाकर उसे जम्बीरी नीबूके रसमें घोटकर चार और शहदके साथ सेवन करनेसे समस्त प्रकार के चार रत्तीकी गोलियां बना लें। ज्वर, खांसी, क्षय, अर्श और संग्रहणी आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। इन्हें त्रिकुटे ( सेठ, मिर्च, पीपल ) के चूर्णके साथ मिलाकर गर्म पानीके साथ सेवन (४२८२) पञ्चामृतपर्पटी (२) (भैरवनाथी) करने से अग्निमांद्य नष्ट होता है। ( र. र. स. । उ. ख. अ. १४; र. रा. सु. । राजय.) (न्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती।) सुवर्ण रजतं तानं सत्त्वाऽभ्रं कान्तलोहकम् । (४२८१) पश्चामृतपर्पटी (१) क्रमवृद्धमिदं सर्व शाणेयौ नागवङ्गको । द्रावयित्वैकतः सर्व रेतयित्वा ततश्चरेत् । (वै. र. । ज्वरचि.) पृथक पलमितं गन्धं शिलाऽऽलं विनिधाय च ।। रविरसभुजगायोवन्तो गन्धकस्य सर्व खल्वे विनिक्षिप्य मईयेदम्लवर्गतः । द्विगुणरचितमागं द्रावयेल्लोह उष्णम् । ताप्यं नीलाअनं तालं शिलां गन्धश्च चूर्णितम् ॥ समविनिहितपकास्थायिरम्भादलस्य दत्त्वा दत्त्वा पुटेतावद्यावदिशतिवारकम् । तदितरदलयोगात्मसं यत्समन्तात् ॥ कोहाद् द्विगुणसूतेन ततो द्विगुणगन्धतः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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