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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४१८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि शुद्धस्तमभ्रसमं गन्धक तथा मतम् । करछीसे चलाते हुवे मन्दाग्नि पर पकावें । जब त्रिगुणामयसश्चूर्णात् कृत्वाता त्रिफलां नयेत् ।। अवलेह तैयार हो जाय तो उसमें २॥ तोले शुद्ध दत्वा हिरष्टपानीयमष्टभागावशेषयेत् । पारद और २॥ तोले शुद्ध गन्धककी कज्जली तेन चाटावशेषेण पचेल्लोहाभ्रगुग्गुलम् ॥ तथा बायबिडंग, सेठ, धनिया, गिलोयका सत, घृततुल्यं शतावर्या रसं दत्त्वा तथा शुभम् । जीरा, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ, प्रस्थं प्रस्था दुग्धस्य शनैर्मदमिना मिषक् ॥ | निसोत, दन्तीमूल, हर्र, बहेड़ा, आमला, इलालोहमय्या पचेदा पात्रे चायसि मृण्मये। यची और नागरमोथे में से हरेकका चूर्ण २॥ २॥ ततः पाकविधिज्ञस्तु पाकसिद्धे विनिक्षिपेत् ॥ तोले मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर सुरक्षित रसकजलिकां कृत्वा दत्वा चापि विशुद्धयेत् । रक्खें। विडा नागरं धान्यं गुडूचीसत्वजीरकान् ॥ पञ्चकर्म द्वारा शरीर शुद्धि करनेके पश्चात् पञ्चकोल त्रिदन्ती त्रिफलैला च मुस्तकम्। । इसे जरासे घी और शहदमें मिलाकर गिलोय, सांठ मुचूर्णितं च प्रत्येकं चूर्णमर्द्धपलन्तथा ॥ और अरण्ड मूलके कायके साथ सेवन करनेसे उत्तार्य स्थापयेद्भाण्डे सिद्धे चापि सुरक्षितम् । आमातका नाश होता है। घृतेन मधुना पश्चान्मईयित्वानुपानतः॥ सन्धिवात, कर्णशूल, दारुण कुक्षिशूल, गुचीनागरैरण्डं काथयित्वा जलं पिबेत् ।। भक्षयेच्छुद्धदेहस्तु शुभेऽहनिसुरार्चकः ।। जंघाशूल, पादाङ्गुली-शूल, गृध्रसी, अग्निमांध, आमवातमहाव्याधिविनाशाय महौषधम् । | गुल्म, शोध, कामला और दुःसह पाण्डु रोगके सन्धिवात कर्णशूलं कुतिशूलं सुदारुणम् ॥ लिये यह एक उत्तम औषध है। जापादाङ्गुलीशूलगृध्रसीममिमान्यताम् ।। (४२७९) पचाननो रसः ( ८ ) गुल्मं शोथ कामलाच पाण्डुरोग सुदुःसहम् ।। ( भै. र. । गुल्म.; र. चिं. । अ. ९; र. रा. सु.; आमवातगजेन्द्रस्य केसरी मुनिनिर्मितः ॥ र. सा. सं. । गुल्म.) हर, बहेड़ा और आमला १५ पल (७५ | पारदांशकतुत्या गन्धं जैपालपिप्पली। तोले ) लेकर अधकुटा करके उसे ३० सेर पानीमें | आरवधफलान्यज्ज वजीतीरेण भावयेत् ॥ पकावें और जब आठवां भाग ( ३॥ सेर ) पानी | धात्रीरसयुतं खाद्भक्तगुल्मपशान्तये। शेष रह जाय तो उसे छानकर उसमें लोहभस्म | चिश्वादलरसखानु पर्थ्य दध्योदनं हितम् ॥ ५ पल ( २५ तोले ), शुद्र गूगल २५ तोले शुद्ध पारा, शुद्ध नीलाथोथा, शुद्ध गन्धक, और अभ्रक भस्म १२॥ तोले तथा २ सेर गायका शुद्र जमालगोटा, पीपलका चूर्ण और अमलतासका मी, २ सेर शतावरका रस और २ सेर गायका गूदा समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक की दूध मिलाकर लोहे या मिट्टीके पात्रमें लोहेकी | कजली बनावें फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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