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रसमकरणम्]
तृतीयो भागः।
[४१७]
१ दिन शहदके साथ घोटकर ( २-२ रत्ती की)। कि उसमें पानके साथ खानेको लिखा है और गोलियां बना लें।
इसमें तुलसीदल तथा मिर्चका अनुपान लिखा है। इन्हें प्रातःकाल शीतल जलके साथ सेवन | उसकी अपेक्षा इसमें निम्न लिखित पाठ अधिक है करनेसे २० प्रकारके प्रमेह, अश्मरी, मूत्राघात | तच्छीत ताम्रभस्मापि गृहणीयात्सुरसा जलैः।
और उग्र मूत्रकृच्छू आदि रोग नष्ट होते हैं। याम मर्च ततो वल्लं तुलसीमरिचैर्युतम् ॥ (४२७७) पचाननो रसः (५)
इन्ति सर्वज्वरं घोरं विषमश त्रिदोषजम् ।
धात्रीकल्केन वा युक्त दाहाख्यं विषम जये। (र. रा. सु. । कुष्ठ.)
पथ्यं दुग्धोदनं दद्यान्मुद्गयूष सशर्करम् । शुदस्त समं गन्धं त्र्यूषणमुस्ताफलत्र्यम् । ज्वरे धातुगते दधात्पिप्पलीक्षौद्रसंयुतम् ॥ गुइचीचूर्णयेत्तुल्यं चूर्णाच द्विगुण गुडम् ॥ अयं पञ्चाननो नाम विषमज्वरनाशनः॥ द्विगुञ्जां वटिकां खादेन्मासैकागजचर्मनु । सम्पुटके स्वांग शीतल हो जाने पर उसमेंसे रसः पश्चाननो नाम्ना अनुस्यात्तौद्रवाची ॥ औषधको निकाल लें और ताम्रके भस्मीभूत भाग
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, सांठ, मिर्च, पीपल, | को भी उसीमें मिलाकर सबको १ पहर तुलसीके नागरमोथा, हरे, बहेड़ा, आमला और गिलोय एक | रसमें घोटकर ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लें। एक भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली तुलसीके रस और काली मिर्चके चूर्णके बनावें तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण | साथ खानेसे घोर सन्निपात और विषम ज्वर नष्ट मिलाकर धोटें फिर उसमें उस सबसे २ गुना | होता है। गुड़ मिलाकर २-२ रत्तीकी गोलियां बनावें।।
आमलेके कल्कके साथ सेवन करनेसे
दाहयुक्त विषम ज्वर नष्ट होता है। इसे १ मास तक सेवन करनेसे गजचर्म
धातुगत ज्वरमें पीपलके चूर्ण और शहनामक कुष्ठ नष्ट होता है।
दके साथ देना चाहिये। इसे खाकर ऊपरसे शहद के साथ बाबचीका | यह रस विषम ज्वरेके लिये विशेष उपचूर्ण खाना चाहिये।
योगी है। पशाननो रसः (६)
(दाह युक्त ज्वरमें ) पथ्य-दूध भात (शीतभञी रसः)
तथा मिश्रीयुक्त मूंगका यूष। (र. सा. सं.; र. र. स.; मै. र.; र. रा. सं.; र. (४२७८) पञ्चाननो रसः (७) च.; र. चि.; र. सं. क.; भा. प्र.; शा. ध.; ___(पश्चाननरसलौहम् ) र. प्र. सु. । ज्वरा.)
(भै. र.; र. र. । आमवातरो.) ज्वरारिरस सं. २१७० देखिये। जारितं पटित लौरचूर्ण पापलन्ततः । उसमें और इसमें केवल इतना ही अन्तर है । गुग्गुलोः पलपवाय लोहा एतमभ्रकम् ॥
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