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चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो मागः।
[२९] (२९५९) दाडिमाष्टकचूर्णम् (२) कोन्मिता तुगाक्षीरी चातुर्जात त्रिकार्षिकम्म
(ग. नि. । चूर्णा.; वै. र.; वृ. नि. र. । संग्र.) यवानीधान्यकाजाजीग्रन्थिव्योष पलांशकम् ॥ दारिमस्य पलान्यष्टौ 'चातुतिं पलट्रयम् । पलानि दाडिमस्याष्टौ सितायाधैकतः कृतम्। अजाजीनां पलार्धन्तु पलाधै धान्यकस्य च ॥ गुणैःकपित्याष्टकवचूर्ण तहाडिमाष्टकम् ॥ पृथक पलशिकान् भागान् त्रिकटोग्रन्थिकस्य चा बनसलोचन ११ तोला, दालचीनी, तेजपात, स्वकक्षीरी बालकं चैव दद्यात्कर्षसमान् भिषक ।। इलायची, नागकेशर प्रत्येक ३॥ तोले; अजवाशर्करायाः पलान्यष्टौ तदेकस्य विचूर्णयेत्।। यन, धनिया, जीरा, पीपलामूल, सांठ, मिर्च, पीभामातीसारशमनं कासहपाचशूलनुत् ॥ पल, ५-५ तोले और खांड तथा अनार दाना हद्रोगमरुचिं गुल्मं ग्रहणीमग्निमार्दवम् । ४०-४० तोले लेकर चूर्ण बनावें । प्रयुक्तो नाशयत्येष चूर्णोऽयं दाडिमाष्टकः। इसके गुण कपित्थाष्टक चूर्णके समान हैं।
अनारदाना ८ पल; दालचीनी, तेजपात, (अतिसार, क्षय, ग्रहणी, गुल्म, खांसी, श्वास, इलायची, नागकेसर, जीरा और धनिया, हरेक अरुचि, हिचकी आदिमें उपयोगी है । मात्राआधा पल, सोंठ, मिर्च, पीपल, और पीपलामूल हरेक ३ माशे १ पल ( ५ तोले ); बंसलोचन और सुगन्धबाला नोट-इसमें और दाडिमाष्टक नं. १ में १।-१। तोला तथा खांड ८ पल । सबका चूर्ण केवल इतना ही अन्तर है कि उसमें दालचीनी, बनाकर रखें।
तेजपात, इलायची और नागकेसर में से हरेक यह 'दाडिमाष्टक चूर्ण' आमातिसार,खांसी ७॥ माशे है और इसमें हरेक ३॥ तोले । अगर हृदयकी पीड़ा, पसलीका दर्द, हृद्रोग, अरुचि, त्रिकार्षिकम्की जगह द्विकार्षिकम् पाठ रखकर गुल्म, ग्रहणीरोग और भग्निमान्यका नाश करता है। चारों चीजें मिलाकर २ कर्ष (२॥) तोले लें तो
( मात्रा ३ माशे । अनुपान तक या रोगो- | दोनों योग बिलकुल समान हो जाते हैं । चित अन्य पदार्थ ।)
(२९६१) दाडिमाष्टकचूर्णम् (४) नोट---दाडिमाष्टक नं. १ और इसमें |
। (वृ. नि. र. । संग्र.; वै. र. । संग्र.) ओषधियां लगभग समान ही पड़ती हैं कुछ पलद्वयं दाडिमस्य व्योषस्य च पलद्वयं । ओषधियोंके परिमाणमें अन्तर है और अजवायनको । त्रिगन्धस्य पलं चैकं खण्डस्याष्टपलानि च ॥ जगह सुगन्ध बाला पड़ता है।
सर्वमेकीकृतं चूर्ण प्रशस्तं दाडिमाष्टकम् । (२९६०) दाडिमाष्टकचूर्णम् (३) दीपनं रुचिदं कण्ठयं संग्राह्यं ग्रहणीहरम् ॥ (यो. र.; वृं. नि. र. । अति. ग. नि. । अनारदाना २ पल, सेठि, मिर्च, पीपल तीनों चूर्णा.; च. द; . मा.; भै. र. । ग्रहणी) । अलग अलग २-२ पल, दालचीनी, इलायची, १-२ पलं सौगग्धिकस्य चेति पाठान्तरम् । ३--द्विकार्षिकमिति, कार्षिकमिति च पाठान्तरम् ।
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