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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैपज्य -२ [३०] तेजपात तीनों समान भाग मिलाकर ३ पल (१५ तोले) और खांड ८ पल लेकर चूर्ण बनावें । यह " दाडिमाष्टक चूर्ण ” दीपन, रोचक, कण्ठके लिए हितकारी और ग्रहणी रोग नाशक है। (२९६२) दार्वादिचूर्णम् ( यो. र. । अति. ) पीतदारु वचा लोधं कलिङ्गफलं नागरम् । दाडिमाम्बुयुतं दद्यात्पित्तवातातिसारिणे ॥ दारूहल्दी, बच, लोध, इन्द्रजौ और सेठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे अनारके स्वरस या काथ साथ देनेसे पित्तज तथा वातज ( या वातपित्तज ) अतिसार नष्ट होता है । ( मात्रा ३ माशे । ) (२९६३) दार्वादियोग: ( यो. र. । शोथ. ) पिबेदुष्णाम्बुना दारुपथ्याशुण्डी पुनर्नवाः । विडङ्गातिविषावासाविश्वदारूषणानि च ॥ वर्षाभ्यां ककं वा सर्वशोफनुत् ॥ (१) देवदारु, हर्र, सोंठ, और पुनर्नवा (साठी) (२) बायबिडंग, अतीस, बासा, सोंठ, देवदार और कालीमिर्च । इन दोनों योगों में से किसी एकका चूर्ण बनाकर या बिसखपरा ( साठी ) और सेका कल्क बनाकर गरम पानीके साथ पीनेसे समस्त प्रकारके शोथ नष्ट होते हैं। (२९६४) दार्वीचूर्णम् ( वृ. नि. र. । अण्डवृ . ) दावचूर्णे गवां त्रैर्निपीतं मुष्कद्धिजित् । दारुहल्दी चूर्णको गोमूत्र के साथ सेवन करने से अण्डवृद्धि रोग नष्ट हो जाता है । ( मात्रा - ३ माशे । ) - रत्नाकरः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ दकारादि (२९६५) दार्व्यादिचूर्णम् ( र. र. । बाल . ) दावयष्टयभया जातीपत्रक्षौद्रैस्तथापरम् । जातीपत्ररसः पूतः क्षौद्रयुक्तः प्रशस्यते । शिशोः कर्णव्रणस्रा मुखपाके च शस्यते ॥ दारूहल्दी, मुलैठी, हर्र और चमेली के पत्तोका चूर्ण शहद में मिलाकर या चमेलीके पत्तोंके रसको कपड़े में छानकर शहद में मिलाकर कान में डालने और मुखमें लेप करने से बालकेांके कानका घाव, कान बहना और मुखके छाले जाते रहते हैं । (२९६६) दीप्यकादिचूर्णम् (ग. नि.; वृ. नि. र. । शूला. ) arters सैन्धर्व पथ्या नागरच चतुः पलम् । चूर्ण शुकं जयत्येतत्सन्नष्टस्याग्नेश्च दीपनम् ॥ अजवायन, सेवा, हर्र और सोंठ का चूर्ण ५-५ तोले ले कर एकत्र मिलावें । यह चूर्ण शूलको नष्ट करता और मन्दाग्निको करता है । ( मात्रा - ३ माशे । अनुपान - गरम पानी या काञ्जी ) For Private And Personal Use Only (२९६७) दुरालभादिक्षारः (च. सं. । चि. अ. १९; वं. से. । ग्रह. ) दुरालभाकर द्वौ सप्तपर्ण सवत्सकम् । ग्रन्थों मदनं मूर्वी पाठामारग्वधं तथा ॥ गोमूत्रेण समांशानि कृत्वा चूर्णानि दापयेत् । दग्ध्वा च तं पिबेत् क्षारं बलवर्णानि वर्द्धनम् ॥ धमासा, दोनों प्रकारके करन की छाल, सतौनेकी छाल, कुड़ेकी छाल, बच, मैनफल (मेंडफल), मूर्वा, पाठा और अमलतासकी छाल समान भाग
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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