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धूम्रप्रकरणम् ]
[३९७]
तृतीयो भागः। अथ पकारादिधूम्रप्रकरणम्
(४२१९) प्रपौण्डरीकादिघूमः मिर्च, पीपल, मुनक्का, इलायची और तुलसी की
(च. स. । चि. अ. १८ कास.) | मञ्जरी समान भाग लेकर सब को पीसकर यथाविधि पपौण्डरीकं मधुकं शाङेष्टां समनःशिलाम् । बत्ती बनावें और उस पर रेशमी कपड़ा लपेट दें। मरिचं पिप्पली द्राक्षामेलां सुरसमञ्जरीम् ॥ इसे घृतसे स्निग्ध कर के इसका धूम्रपान कृत्वा वति पिबेद्धमं क्षौमचेलानुवर्तिताम् । | करने से खांसी नष्ट होती है। घृताक्तामनु च क्षीरं गुडोदकमथापि वा॥ धूम्रपान करने के पश्चात् दूध या गुड़ का __ पुण्डरिया, मुलैठी, मकोय, मनसिल, काली ' शर्बत पीना चाहिये ।
इति पकारादिधूम्रपकरणम् ।
अथ पकाराद्यअनप्रकरणम्।
(४२२०) पधशतावतिः
। चावल १०० दाने लेकर सब को अत्यन्त महीन
पीसकर पानी की सहायता से पत्तियां बनावें । (ग. नि. । नेत्र. ३)
___यह पञ्चशतावति यवनांने शिलास्तम्भ पर नीलोत्पलपत्रशतं मुद्गशतं यवशतं च निस्तु- | लिखाई थी।
षकम् । ___ इसे आंखों में डालने से तिमिररोग नष्ट मालत्याः कुसुमशतं पिप्पल्यास्तन्दुलशतं च ॥ होता है । पञ्चशतेषा वर्तिलिखिता यवनैः शिलास्तम्भे ।
| (४२२१) पटलहराञ्जनम्
(र. र. स. । अ. २३) अन्धमनन्धं कुरुते यस्य च नोत्पाटिते नयने ।
कारवेल्लद्रवैः सार्धं सम्यग्मा कपर्दिका । नीलोत्पल की पंखड़ियां १०० नग, छिलके
सूतकं टङ्कणं लाक्षा तुल्यं जम्बीरजद्रवैः ॥ रहित मूंग १०० दाने, छिलके रहित जो १०० पीपल को दूध में भिगोकर यो मेरो नग, चमेली के फूल १०० नग और पीपल के | उन के चावल निकल आते हैं।
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