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भारत-भैषज्य-रेत्नाकरः ।
[पकारादि
अथ पकारादिधूपप्रकरणम्
(४२१४) पलङ्कषादिधूपः
काकजङ्घामहाश्वेताकपित्थक्षीरिपादपैः। ( वृ. नि. र. । विषम ज्वर.; वं. से.; यो. र. । सकरञ्जकदम्बैश्च धूपं स्नातस्य चाचरेत् ॥ ज्वरा; वा. भ. । चि. अ. १)
देवदार, अरलुकी छाल, जामनवृक्षकी छाल,
बरने की छाल, सुगन्धतृण, ब्राह्मी, चिरचिटा, पलङ्कमा निम्बपत्रं वचा कुष्ठं हरीतकी।
पाढल की छाल, मुलैठी, सहजने की छाल, काकसर्पपाः सयवा सर्पिधूपनं ज्वरनाशनम् ॥
जंघा, श्वेत अपराजिता ( कोयल), कैथ की छाल, गूगल, नीमके पत्त, बच, कूठ, हरे, सरसो क्षीरी वृक्ष (पीपल, बड़, गूलर आदि) की छाल, और जौ के समान-भाग-मिश्रित चूर्ण को घीमें | करञ्ज की छाल और कदम्ब की छाल । सब चीजें मिलाकर उसकी धूप देनेसे ज्वर नष्ट हो जाता है। | समान-भाग लेकर चूर्ण बनावें।। (४२१५) पलङ्कषादिधूपः
बालक को स्नान कराने के पश्चात् इस की (वृ. यो. त. । त. १४४; वं. से.; वृ. नि. र.। धूप देनेसे समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं। बालरोग.)
(४२१७) पुरीषादिधूपः । पलङ्कषा वचा कुष्ठं गजचर्माविचर्म च ।। (बृ. नि. र. । बालरो.) निम्बस्य पत्रं माक्षीकं सर्पिर्युक्तं च धूपनम् ॥ पुरीषं कौक्कुट केशाश्चर्मसर्पभवं तथा । ज्वरवेगं निहन्त्याशु बालकानां विशेषतः ॥ | जीर्णेन सर्पिषा चैतद्धपनायोपकल्पयेत् ॥ ____ गूगल, बच, कूठ, हाथी का चर्म, भेड़ का | मुरगे की विष्ठा, बाल, सांप की कांचली और चर्म और नीमके पत्ते । सब के समान भाग चूर्ण पुराने घी को एकत्र मिलाकर उस से बालकको धूप को शहद और घीमें मिलाकर उसकी धूप देने से | देनी चाहिये । ज्वरका वेग कम हो जाता है ।
(यह योग पूतनाग्रहनाशक है।) यह योग बालकों के लिये विशेष उपयोगी है। (४२१८) पूतीकरञ्जादिधूप: पारदादिधृपः
(वा. भ. ।उ. स्था. अ. ३) (भै. र. । उपदंशे) पूतीदशाङ्घीसिद्धार्थवचाभल्लातदीप्यकैः । रसप्रकरण में देखिये।
सकुष्ठैः सघृतधूपः सर्वग्रहविमोक्षणः ॥ (४२१६) पारिभद्रादिधृपः
करञ्ज, दशमूल, सफेद सरसों, बच, भिलावा, (ग. नि. । बालग्रहा. १२) अजवायन और कूठ के समभाग-मिश्रित चूर्ण को पारिभद्रककाजम्बूवरुणकतृणैः । घी में मिलाकर उस की धूप देने से बालकों के कपोतवङ्कापामार्गपाटलामधुशिग्रुभिः॥ समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं ।
इति पकारादिधूपप्रकरणम् ।
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