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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेपप्रकरणम् ] पुण्डरिया, मुलैठी, सरल ( धूपसरल ), अगर देवदारु, रास्ना, कूठ और इलायची । इनका लेप करने और इनके काथसे घाव धोनेसे वातज उपदंश नष्ट होता है । तृतीयो भागः । (४२०९) प्रपौण्डरीकादिलेप: (४) (ग. नि. । विसर्पा. ३९.; च. द. 1 विसर्पा.) प्रपौण्डरीकमञ्जिष्ठापद्मकोशीरचन्दनैः । सयष्टीन्दीवरैः पिष्टैः क्षीरयुक्तैः प्रलेपनम् ॥ पुण्डरिया, मजीठ, पद्माक, खस, लाल चन्दन, मुलैठी और कमलको दूधके साथ पीसकर लेप करने से पित्तज विसर्प नष्ट होता है । (४२१०) प्रपौण्डरीकादिलेप: (५) (ग. नि. । विसर्पा ३९ ) पौण्डरीकं मधुकं पयस्था मञ्जिष्ठा पद्मकचन्दने च । सुगन्धिका चेति सुखोपलेपः ह्रीवेरकैश्चन्दनभागयुक्तैः । पिटैः प्रलेपो विहितो मुखस्य शशाङ्कादधिकां विधत्ते ॥ पैते विसर्पे भिषजा प्रयोज्यः ॥ पुण्डरिया, मुलैठी, क्षीरकाकोली, मजीठ, पद्माक, लाल चन्दन और श्वेतापराजिता ( सफेद कोयल) को पानी के साथ पीसकर लेप करनेसे पित्तज विसर्प नष्ट होता है । (४२११) प्रियवादिलेप: ( रा. मा. । मुखरो. ५) प्रियङ्गुकाश्मीरजकोलमज्जा [३९५ ] फूलप्रियङ्गु, केसर, बेरकी गुठली की गिरी, सुगन्धवाला और लाल चन्दन को पानी में पीस कर लेप करनेसे मुख चन्द्रमासे भी अधिक दीप्तिमान हो जाता है । (४२१२) प्रियालादिलेपः (वृ. मा । क्षुद्ररोग. शा. ध. । ख. ३ अ. ११) प्रियालबीजमधुककुष्ठमित्रैः ससैन्धवैः । nara arora मूर्ध्नि पो मधुसंयुतः ॥ चिरौंजी, मुलैठी, कूठ और सेंधा नमक को पीसकर शहद में मिलाकर लेप करने से दारुण ( शिरो रोग विशेष ) नष्ट होता है । (४२१३) लक्षाद्यो लेपः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ग. नि. । बालग्रहा. १२ ) लक्षाश्वत्थोदुम्बरमधूकवटगर्दभाण्डतरुणानाम् । आदाय मुष्टिमात्रं विपाच्य सलिलार्द्धशेषेण ॥ तेन जलेन शिशूनां स्नानं कुर्वीत पूतशीतेन । त्वग्रक्तकोटमण्डलविस्फोटकशमनमायुष्यम् ॥ सर्वग्रहापनोदनमुपचकरमाशु सर्वसन्धीनाम् । एषामेव च कल्कैः सरक्तकोठापही लेपः ॥ पिलखन, पीपल, गूलर, महुवा, बड़ और पारसपीपल की समान भाग मिश्रित छालें ५ तोले लेकर कूट कर पानी में पकायें और आधा पानी जल जाने पर उसे छानकर ठंडा करें। इस पानी से बालक को स्नान करानेसे उसके त्वग्दोष, रक्तविकार, चकते, विस्फोटक आदि और समस्त ग्रहदोष शान्त होते तथा शीघ्र ही उस की सन्धियां मज़बूत हो जाती हैं । उपरोक्त ओषधियों को पानीमें पीसकर लेप करनेसे त्वचा के लाल चकते नष्ट होते हैं । १ माषैरिति पाठान्तरम् । इति पकारादिलेपप्रकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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