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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपकरणम् ] तृतीयो भागः। [३९३] काञ्जिकेन पिष्टं तु सुखोष्णेनैव कारयेत् । । (४२०१) पूतिकादिलेपः लेपो दृद्धिहरः प्रोक्तः सद्य शूलनिवारणः॥ (वृ. मा. । कुष्ठा.) पुनर्नवा ( साठी ) की जड़, अण्डीके सूखे पूतीकार्कस्नुङ्नरेन्द्रद्रुमाणां फल, तिल और जौका चूर्ण । सब चीजें समान मुत्रैः पिष्टाः पल्लवाः सौमनाश्च । भाग लेकर सबको कांजीके साथ अच्छी तरह लेपाच्छ्त्रिं नन्ति दवणांश्च पीसकर मन्दोष्ण लेप करनेसे वृद्धि और शूल कुष्ठान्यझै दुष्टनाडीव्रणांश्च ॥ शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। करञ्ज, अर्क, (आक), स्नुही (सेंड-सेहुंड), (४१९९) पुनर्नवादिलेपः (३) और अमलतास के पत्ते तथा फूलोंको गोमूत्र में (यो. र. । श्वयथु.) | पीसकर लेप करनेसे सफेद कुष्ठ, दाद, घाव, कुष्ठ, पुनर्नवा दारु शुण्ठीसिद्धार्थे शिग्रुमेव च । अर्श और नाडीव्रण ( नासूर ) नष्ट होता है । पिष्ट्वा चैवाऽऽरनालेन प्रलेपः सर्वशोथजित् ॥ (४२०२) पूर्णचन्द्रलेपः। पुनर्नवा ( बिसखपरा-साठी ), देवदारु, (र. चं. । कुष्ठ.) सेांठ, सफेद सरसों और सहंजनेकी छाल । सब । करजैडगजानिम्बगुडावाकुचिकुष्ठकाः। समान भाग लेकर सबको कांजीमें पीसकर लेप | तालकं मरिचं मुस्तं गोमूत्रकदेमैः सह । करनेसे समस्त प्रकारके शोथ नष्ट होते हैं। | सर्वकुष्ठहरो लेपो गहनानन्दनिर्मितः । (४२००) पूगादिलेपः | दहेद्दावानलं यद्वन्निदाघतणसङ्कुलम् ।। (यो. र. । उपदंशा.) पूर्णचन्द्रकनामाऽयं कुष्ठनाशाय च तथा। पूगं सुदग्धमेकन्तु रसगन्धकहिङ्गलम् । यथा चन्द्रो निशां मन्दां तमसः परिवर्जयेत् ॥ खदिरं तुत्यकं चैव मर्दयेनिम्बुनीरकैः ॥ करञ्जके बीज, पंवाड़के बीज, नीमकी छाल, समभागानि सर्वाणि गुटिकां कारयेद्बुधः। गिलोय, बाबची, कूठ, हरताल, कालीमिर्च, नागरउपदंशे घृतैलेपस्त्रिदिनाद् व्रणरोपणः ॥ मोथा और गोमूत्रकी कीचड़ ( जिस स्थान पर ___ जली हुई सुपारी, पारा, गन्धक, शंगरफ़ | गाय पेशाब किया करती हो उस स्थानकी ( हिंगुल ), खैरसार और नीलाथोथा समान भाग | कीचड़) समान भाग लेकर सबको महीन पीसलेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना. फिर | कर लेप बनावें । उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको जिस प्रकार दावानल सूखे तृणसमूहको नीबूके रसमें घोटकर गोलियां बनालें । और चन्द्रमा रात्रिके अंधकारको नष्ट करता है ___ इन्हें धीमें मिलाकर लेप करनेसे ३ दिनमें | इसी प्रकार यह लेप समस्त कुष्ठांको नष्ट कर उपदंशके पाव भर जाते हैं । | देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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