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भारत-मैपज्य - रत्नाकरः ।
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लें । इसे पीसकर सर्पके दंश स्थान पर लगानेसे मृतप्रायः रोगी भी सचेत हो जाता है 1 (४१९२) पिण्याकादिलेपः
( वृ. मा. । क्षुद्ररोग; शा. ध. । ख. ३ अ. ११) पुराणमथ पिण्याकं पुरीषं कुक्कुटस्य च । मूत्रपिष्टः मलेषोऽयं शीघ्रं हन्यादरूंषिकाम् ||
तिलकी पुरानी खल और मुरगेकी विष्टाको गोमूत्र में पीसकर लेप करनेसे अरूंषिका ( शिरकी छोटी छोटी फुंसियां ) शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं । (४१९३) पिप्पल्या दिलेप: (१) ( भा. प्र. 1 अर्श.)
पिप्पलीं सैन्धवं कुठं शिरीषस्य फलं तथा । सुधादुग्धार्कदुग्धं वा लेपोऽयं गुदजान् हरेत् ॥
पीपल, सेंधानमक, कूठ और सिरसके बीज समान भाग लेकर सबका महीन चूर्ण बनाकर उसे सेंड ( सेहुंड-थोहर ) या आकके दूध में घोटकर लेप करने से अर्शके मस्से नष्ट हो जाते हैं ।
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(४१९४) पिप्पल्यादिलेप: (२)
( ग. नि. । वृद्ध्यधि. ३५ ) पिप्पली जीरकं कुष्ठं बदरं शुष्कगोमयम् । काञ्जिकेन प्रलेपोऽयमन्त्रवृद्धि विनाशनः ॥
पीपल, जीरा, कूठ, बेर और सूखा हुवा गायका गोबर समान भाग लेकर सबको काखीके साथ खूब महीन पीस कर लेप करने से अन्य वृद्धि नष्ट होती है ।
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[ पकारादि
(४१९५) पिप्पल्या दिलेप: (३) ( च. सं. । चि. अ. १४ अर्श. ) पिप्पल्यश्चित्रकः श्यामा किण्वं मदनतण्डुलाः । मलेपः कुक्कुट शक्रुद्ध रिद्रागुडसंयुतः ॥
पीपल, चीता, निसोत, किण्व (सुराबीज ), मैनफल के बीज, मुरगेकी विटा, हल्दी और गुड़ समान भाग लेकर खूब महीन पीसकर लेप करनेसे अर्शके मस्से नष्ट हो जाते हैं । (४१९६) पुत्रजीवका दिलेप:
( भा. प्र. म. ख. विस्फोटका . ) पुत्रजीवस्य मज्जानं जले पिष्ट्वा प्रलेपयेत् । कालस्फोटं विपस्फोट सो हन्यात्सवेदनम् ॥ कक्षाग्रन्थि कर्णग्रन्थि गलग्रन्थि च नाशयेत् ॥
पुत्रजीवक ( पितोजिया ) की मींगीको जलमें पीसकर लेप करनेसे वेदनायुक्त कालेफोड़े, विषैले फोड़े, कक्षाग्रन्थि, कर्णमूल और गलेकी गांठ शीघ्र ही नष्ट हो जाती है ।
(४१९७) पुनर्नवादिलेप: (१)
( वं. से. । व्रण; वृं. मा. । व्रणशोथा. ) पुनर्नवादारु शिग्रदशमूलमहौषधैः । कफवातकृते शोथे लेपः कोष्णो विधीयते ॥
पुनर्नवा ( बिसखपरासाठी ), देवदारु, सहजनेकी छाल, दशमूल और सोंठको महीन पीसकर मन्दोष्ण लेप करनेसे कफवातज शोथ नष्ट होता है ।
(४१९८) पुनर्नवादिलेप: (२)
( ग. नि. । वृद्ध्यधि. ३५ ) मूलं पुनर्नवायाश्च शुष्कैरण्डफलं तिलाः । | सर्वमेकत्र सञ्चूर्ण्य यवचूर्णेन योजयेत् ॥
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