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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपमकरणम् ] तृतीयो भागः। [३९१] - सर्व सम्मेलयेद्दत्वा घृतं सर्वाच्चतुर्गुणम् । इन्हें गायके घृतमें मिलाकर लेप करनेसे पिचुप्लुतं प्रदातव्यं दुष्टवणविशोधनम् ॥ | उपदंशके घाव नष्ट होते हैं। नाडीव्रणहरं चैव सर्वव्रणनिषूदनम् । । (४१८९) पारदादिसर्पिः ये व्रणा न प्रशाम्यन्ति भेषजानां शतेन च ॥ (वै. र. । उपदंश.; वृ. यो. त.। त. ११७) अनेन ते प्रशाम्यन्ति सर्पिषा स्वल्पकालतः ॥ पारदं गन्धकं तालं सिन्दूरं च मनःशिलाम् । ___पारा और गन्धक १-१ भाग लेकर दोनों ताम्रपात्रे तु सघृते ताम्रेणैव विमर्दयेत् ।। की कजली बनावें तत्पश्चात् उसमें २ भाग मुर्दा- | | धर्मे दिनैकं मृदितमेतत्कण्डूपदंशजित् ॥ सिंग, ४ भाग कमीला और ज़रा सा नीलेथोथे का चूर्ण मिलाकर घोटें और इसे सबसे ४ गुने धीमें | पारा, गन्धक, हरताल, सिन्दूर और मनसिल मिला लें। समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली इस का फाया लगाने से दुष्ट व्रण और नासूर बनावें । तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियां मिलाशुद्ध होकर भर जाते हैं । जो व्रण अन्य सैकड़ों कर सबको तांबेके पात्रमें तांबा लगे हुवे सोटेसे औषधों से नहीं भरते वे इस प्रयोगसे स्वल्प १ दिन घी के साथ धूपमें घोटें । काल में ही नष्ट हो जाते हैं। यह लेप खुजली और उपदंशको नष्ट (४१८८) पारदादिलेपः करता है। (यो. र.; वृ. नि. र. । उपदंशा.) | (४१९०) पारिजातादिकल्कः पारदं गन्धकं तालं दरदं च मनःशिलाम् । ( . मा; यो. र. । नेत्ररो.) पृथक्कर्ष द्विकर्ष च मुडदारं सङ्गजीरकम् ।। वल्कलं पारिजातस्य तैलसैन्धवकाभिकम् । विधाय कज्जलीं श्लक्ष्णां मर्दयेत्सुरसारसैः। कफजाताक्षिजशूलग्नं तरुघ्नं कुलिशं यथा ॥ छायाशुष्कां ततः कृत्वा पुनरुन्मत्तजद्रवैः॥ पारिजात ( हारसिंहार ) की छालको पीसविमर्धाऽथ वटी कार्या उपदंशे प्रयोजयेत् । कर उसमें तैल, कांजी और सेंधा नमक मिलाकर गोघृतेन प्रलेपोऽयं व्रणानां रोपणे हितः ॥ लेप करने से कफज नेत्रशूल इस प्रकार नष्ट हो ___ पारा, गन्धक, हरताल, शंगरफ ( हिंगुल ) | जाता है जैसे वज्रपातसे वृक्ष । और मनसिल १-१ भाग तथा मुर्दासिंग और (४१९१) पिण्डीतगरमूलयोगः शंखजीरा २-२ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण (ग. नि.। विषचि.) मिला कर सबको १ दिन तुलसीके रसमें घोटकर पिण्डीतगरकमूलं पुष्येणोत्पाटय योजितं देशे। छाया में सुखा लें । तदनन्तर उसे १ दिन धतूरे | मृतमपि दष्टकपुरुषं चालयतीति नो चित्रम् ।। के रसमें घोटकर गोलियां बना लें। पुष्य नक्षत्र में पिण्डीतगरकी जड़को उखाड़ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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