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भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
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साथ पीस लें और फिर उसे घी में मिलाकर लेप | ( ४१८५) पारदलेप:
करें ।
(४१८२) पलाशादिलेप: (२)
( यो. र. । गलगण्डा . ) तण्डुलोदकपिष्टेन मूलेन परिलेपितः । हितः कर्णे पलाशस्य गलगण्डः प्रशाम्यति ||
पलाश की जड़ की छाल को तण्डुलोदकर (चावलों के पानी ) के साथ पीस कर कान के नीचे लेप करने से गलगण्ड नष्ट होता है । (४१८३) पाठादिलेपः
( वृं. मा. । स्त्रीरो.) पाठासुरससिंहास्यमयूरकुटजैः पृथक् । नामिवस्तिभगापात्सुखं नारीमसूयते ॥
पाठा, संभालु, बासा, चिरचिटा और इन्द्र जौ । इन में से किसी एक को पीसकर नाभि, बस्ति और योनि में लेप करने से सुखपूर्वक प्रसव हो जाता है ।
(४१८४) पामादद्रुकुष्ठहरो लेपः
( रखें. म. ) पामां विचर्चिकां दद्धुं लेपाद् गन्धक पिष्टिका । कटुतैलेन पक्ता सा लेपनादेव नाशयेत् ॥ गन्धक को पीसकर सरसों के तेल में पका कर मल्हम बना लें 1
इसे लगाने से पामा, विचर्चिका और दाद का नाश होता है ।
१ हस्तिकर्णपलाशस्येति समुचित पाठः
२ तण्डुलोदक बनाने की विधि भा. भै. रत्नाकर प्रथम भाग के ३५३ पृष्ठ पर देखिये ।
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[ पकारादि
(यो. र. । कृमि. रा. मा. । शिरो.) पारदं मर्दयेन्निष्कं कृष्णधत्तूरकद्रवैः । नागवल्लीद्रवैर्वाऽथ वस्त्रखण्डं प्रलेपयेत् ॥ तवस्त्रं मस्तके धार्यं यामत्रयं ततः । बद्ध्वा यूकाः पतन्ति निश्चेष्टाः सलिक्षा नात्र संशयः।।
५ माशे पारद को काले धतूरे या नागरबेल के पान के रस में अच्छी तरह घोटें और फिर उसे एक कपड़े के टुकड़े पर लेप कर दें। यह कपड़ा शिर पर बांध लें और ३ पहर पश्चात् खोल डालें ।
इस प्रयोग से शिर की जुर्वे ( यूका ) और लख (लिक्षा) मरकर गिर पड़ती हैं। (४१८६) पारदादिमलहरम् (१) ( यो. र. । व्रणशोथा; वृ. यो त । त. १११ ) रसगन्धकसिन्दूररालकम्पिलमुर्डकम् । तुत्यं खादिरकं चूर्ण सर्वं घृतचतुर्गुणम् ॥ युक्त्या सम्मेल्य पिचुनावणे देयं विजानता । सर्वत्र प्रशमनं घृतमेतन्न संशयः ॥
पारा, गन्धक, सिन्दूर, राल, कमीला, मुर्दासिंग, नीलाथोथा और कत्था समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक की कजली बनावें तत्पश्चात् उस में अन्य ओषधियों का चूर्ण मिलाकर खूब घोटें और फिर उसे चार गुने घी में मिला लें। इस का फाया लगाने से हर तरह का घाव भर जाता है ।
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(४१८७) पारदादिमलहरम् (२) (यो. र. । व्रणशोथ; वृ. यो. त । त. १११) रसगन्धकयोश्चूर्ण तत्समं मुर्डशङ्खकम् । सर्व तुल्यन्तु कम्पिल्लं किश्चिन्तुन्यसमन्वितम् ॥