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लेपपकरणम्] तृतीयो भागः।
[३८७] (४१६५) पटोलादिलेपः
। श्लक्ष्णैः साम्बुभिराहितः (ग. नि. । श्वयध्वधि. ३३)
प्रकुरुते लेपो मुखे गौरताम् ॥ पटोलो मधुकं निम्बो दार्वी सप्तच्छदो दृषः । लालचन्दन, कमलनाल, पाक, कूठ, बेर सारिवा चेति सघृतं पित्तशोथमलेपनम् ॥ की गुठलीकी गिरी, नागकेसर, दालचीनी, सफेद
पटोल, मुलैठी, नीमकी छाल, दारुहल्दी, | चन्दन, केसर, हल्दी, दारुहल्दी, अगर, काली सतौना, बासा और सारिवा । सबके समान भाग निसोत, सावरलोध, गोरोचन, मुलैठी, गुडहलके मिश्रित महीन चूर्णको घीमें मिलाकर लेप करनेसे | फूल और मसूर समान भाग लेकर महीन चूर्ण पित्तज शोथ नष्ट होता है।
बनावें । इसे पानीमें मिलाकर लेप करनेसे मुखका (४१६६) पत्रकादिलेपः
रंग गोरा हो जाता है। ( यो. र. | कुष्टा.; ग. नि. । कुष्ठा. ३६) । (४१६८) पथ्यादिलेपः (१) पत्रकोषणकासीसतेलताप्यमनःशिलाः।
(रा. मा. । शिरोरो. १) सप्ताहमुषिताः कांस्ये सिध्मश्वित्रविनाशनाः ॥
पथ्याक्षधात्रीफललोहचूर्णे___ तेजपात, कालीमिर्च, कसीस, सोनामक्खी |
। स्तुरङ्गमारासनमार्कवैश्च ।
तुल्यैर्गुडेन प्रतिधूपितैश्च भस्म ( या चूर्ण) और मनसिल समान भाग
लिप्तानि काण्यं पलितानि यान्ति ।। लेकर सबको महीन पीसकर तेलमें मिलाकर
हर, बहेड़ा, आमला, लोहचूर्ण, कनेरकी कांसीके बरतनमें रख दें और सातदिन पश्चात् काममें लावें।
जड़की छाल, असन वृक्षकी छाल और भंगरा
समान भाग लेकर महीन चूर्ण बनावें । इसे गुड़की इसका लेप करनेसे सिध्म और श्वित्र (सफेद
धूनी देकर सफेद बालोंपर लेप करनेसे वे काले कुष्ठ) नष्ट होता है।
हो जाते हैं। (४१६७) पत्राङ्गादिलेपः
(४१६९) पथ्यादिलेपः (२) (रा. मा. । मु. रो. ५) (यो. र. । कु ठा.; वृ. नि. र. । त्वग्दोषा. या पत्रागमणालपद्मक
भा. प्र.; वं. से. । कुष्ठा.) गदैः कोलास्थिमज्जान्वितैः ।
पथ्याकरञ्जसिद्धार्थनिशावल्गुजसैन्धवैः । स्वर्णत्वग्मलयोत्यकुकुम
विडङ्गसहितैः पिष्टैर्लेपमात्रेण कुष्ठजित् ॥ निशायुग्मैः सकालीयकैः॥
हर, करञ्जबीज, सफेद सरसों, हल्दी, बाबची, श्यामासावररोचनामधु
सेंधा नमक और बायबिडंगको महीन पीसकर लेप जपायुक्तैर्मरैरपि ।
करनेसे कुष्ठ नष्ट होता है।
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