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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ३८६ ] www.kobatirth.org 1- भैषज्य रत्नाकरः । अथ पकारादिलेपप्रकरणम् भारत (४१५९) पङ्कलेप: ( वै. म. र । पटल ७ ) चिरजलधर भाण्डोद्भूतपङ्कं गृहीत्वा जठरपणनाभौ निक्षिपेन्मूत्रकृच्छ्री । पानी रखनेके पुराने घड़ेके टुकड़ेको पानी के साथ पीसकर उसकी कीचड़सी बना लें । इसे पेट, अण्डकोष और नाभिपर लेप करसे मूत्रकृच्छ्र नष्ट होता है । (४१६०) पञ्चकोलादिलेपः ॥ ( च. सं. 1 चि. अ. ३० योनिव्या. ) पञ्चकोलकुलत्थैश्च पिष्टैरालेपयेत्स्तनौ । शुष्क प्रक्षाल्य निर्दुश्यात्तथास्तन्यं विशुद्धयति पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ और कुलथी समान भाग लेकर सबको पानीके साथ पीसकर स्तनोंपर लेप कर दें। जब वह सूख जाय तो उसे धो डालें । इस प्रयोग से दूध शुद्ध हो जाता है। (४१६१) पञ्चवल्कलादिलेप: (वं. से.; वृ. नि. र.; वृं. मा. भा. प्र. । विद्रधि.) पश्चवल्कलकल्केन घृतमिश्रेण लेपनम् । सर्पिषा शतधौतेन नवनीतेन वा गवाम् || सिरस, पीपल, पिलखन, बड़ और बेतकी छाल के महीन चूर्णको सौ बार धुले हुवे गायके या गायके मक्खन में मिलाकर लगानेसे पित्तज अण्डवृद्धि रोग नष्ट होता है । (४१६२) पञ्चवल्कलादिलेप: ( यो. र. । वीस. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतधौत घृतविमिश्रः कल्कस्त्वक्पञ्चकस्य लेपेन । बहुदाहकरमुचैरग्निविसर्प विनाशयति ।। [ पकारादि पीपल, पिलखन, बेत, बड़ और सिरसकी छाल चूर्णको सौ बार धोये हुवे घी में मिला कर लगाने से अत्यन्त दाह करनेवाला अभिवीसर्प नष्ट होता है । श्रेष्ठः (४१६३) पञ्चशिरीषलेपः ( च. सं. । चि. अ. २५ ) शिरीषफलमूलत्वकुपुष्पपत्रैः समैर्धृतैः । पञ्चशिरीषोऽयं विषाणां प्रवरो बधे ॥ सिरसके फल, जड़, छाल, पुष्प और पत्र समान भाग लेकर पीसकर सबको घृतमें मिलाकर लेप करनेसे विष नष्ट होता है । (४१६४) पञ्चामलको लेपः ( वं. से. । तृषा ; ग. नि. । तृषा. १६ ) कोलदाडिमवृक्षाम्लचुक्रिकाचुक्रिकारसः । पश्चामलको मुखे लेपः सग्रस्तृष्णां नियच्छति ।। For Private And Personal Use Only बेर, अनारदाना, इमली, चुक्र ( शुक्त) और चूकेका रस समान भाग लेकर पहिली तीनों चीज़ोंको महीन पीस लें और फिर सबको एकत्र मिलाकर उसका मुखमें लेप करें । इससे तृष्णा शीघ्र ही शान्त हो जाती है ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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