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आसवारिष्टप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[३८५]
धातकी षोडशपलां द्राक्षायाः पलविंशतिम् । उशीरकाश्मरिफलं रास्ना भाजी च नागरम् । तुलामानां सितां दत्त्वा मालिकार्द्धतुलां तथा ।। एषा द्विपलिकान्भागांश्चतुर्दोणेऽम्भसः पचेत्।। जलद्रोणद्वये क्षिप्त्वा मासं भाण्डे निधापयेत् ।। द्रोणशेषे कपाये तु प्रते शीते प्रदापयेत । पुनर्नवासवो हथेप शोथोदरविनाशनः ॥ मुटस्य त्रिशतं तत्र धातक्याः पलविंशतिः ॥ प्लीहानमम्लपित्तं च यकृद्गुल्मज्वरादिकान् । कृच्छ्रसाध्यामयान् सर्वान् नाशयेन्नात्र संशयः।।
मरिचं केशरं श्यामामेलात्वक्पत्रकं पलम् । सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला,
पिप्पलीनां तु कुडवं चूर्णीकृत्य पदापयेत् ।। दारुहल्दी, गोखरु, छोटी कटेली, बड़ी कटेली, घृतभाण्डे स्थितं मासं पिबेन्मात्रां यथाबलम् । बासा, अरण्डमूल, कुटकी, गजपीपल, पुनर्नवा
क्षपापस्मारकासासक्शोफगुल्मभगन्दरान् ॥ ( साठी- --बिसखपरा), नीमकी छाल, गिलोय,
पुष्करासव इत्येष प्रयोगादेव नाशयेत् ॥ सूखी मूली, धगासा और पटोल ५-५ तोले तथा पोखरमूल ६। सेर, धमासा ३ सेर १० तोले, धाय के फूल १ सेर लेकर सब को कटकर चूर्ण या ५ सेर ४५ तोले, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, बनावें।
पीपल) १। सेर, मजीठ, कूठ, काली मिर्च, कैथ, तदनन्तर एक चिकने मटके में १२८ सेर देवदारु, लोध, बायविडंग, चव, पीपलामूल, खस, पानी भरकर उस में उपरोक्त चूर्ण और २० पल खम्भारी के फल, रास्ना, भरंगी और सोंठ १०(१। सेर) मुनक्का, ६, सेर खांड और ६। सेर
१० तोले लेकर सब को कूटकर १२८ सेर पानी शहद मिलाकर उस का मुख बन्द कर दें। और में पकावें । जब ३२ सेर पानी शेष रह जाय तो एक मास पश्चात् आसवको निकालकर छान लें। छानकर ठंडा होने पर उस में १८॥ सेर गुड़,
यह, आसव, शोथोदर, प्लीहा, अम्लपित्त, | १। सेर धाय के फूलों का चूर्ण तथा काली मिर्च, यकृत् , गुल्म और ज्वर आदि कष्ट साध्य रोगों नागकेसर, निसोत, इलायची, दालचीनी और को नष्ट करता है।
तेजपात का चूर्ण ५-५ तोले एवं पीपल का चूर्ण (४१५८) पुष्करमूलासवः
२० तोले मिलाकर सब को चिकने मटके में भर(ग. नि. । आसवा. ६)
कर उस का मुख बन्द कर दें और एक मास तुला पुष्करमूलस्य तदई तु दुरालभा।
पश्चात् आसव को निकालकर छान लें। तदर्द्धन तु धान्याकं व्योषाच पलविंशतिः ।। इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करने से मञ्जिष्ठाकुष्ठमरिचं कपित्थं देवदारु च । क्षय. अपस्मार, खांसी, शोथ, गुल्म और भगन्दर रोधं कृमिघ्नं चविका पिप्पलीमूलमेव च ॥ नष्ट होता है ।
इति पकाराघासवारिष्टमकरणम् ।
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