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[ ३७० ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
त्रिकटु त्रिफला शृङ्गी धान्यकं कट्फलं तथा। । रक्तपित्त, महाशोथ, खांसी, श्वास, भगन्दर, तिल्ली, शटी दावी प्रियङ्गश्च पद्मकाष्ठं हरेणुकम् ।।
| उदर रोग और जीर्णज्वर को नष्ट और अग्निको कुष्ठं पुनर्णवा चैव यमानी कारवी तथा।।
दीप्त करता तथा कान्ति बढ़ाता है । एला त्वचं सलोध्रश्च पत्रकं नागकेशरम ॥ (४१३०) पुनर्णवाद्यं तैलम्
(वं से. । अस्मरि.; यो. र. । अण्डवृद्धि.) वचा ग्रन्थिकमूलश्च चव्यं चित्रकमूलकम् ।। शतपुष्पाम्बु मभिष्ठा रास्ना यासस्तथैव च ॥ पुनर्नवामृताभीरुसक्षारलवणत्रयः ।। एतेषां कार्षिकैर्भागैः पेषयित्वा विनिःक्षिपेत् । शठाकुष्ठवचामुस्तरास्नाकट्फलपाष्करः ।। कामलां पाण्डुरोगश्च हलीमकमथारुचिम् ॥ | यवानीहपुषाहिङ्गशताहासाजमोदकैः । रक्तपित्तं महाशोथं कासं श्वासं भगन्दरम् । | विडङ्गातिविषायष्टीपञ्चकोलकसंयुतैः ॥ प्लीहानमुदरश्चैव जीर्णज्वरमपोहति ॥ एतैरक्षसमैः कल्कैस्तैलप्रस्थं विपाचयेत् । कुरुते परमां कान्ति प्रदीप्तं जठरानलम् ।। गोमूत्रं द्विगुणं देयं काञ्जिकं तद्वदेव तु ॥ तैलं पुनर्णवाख्यातं सर्वान् व्याधीन व्यपोहति ॥ पुनर्नवाद्यमित्येतत्तैलं पानेन बस्तिना।
काथ--६। सेर पुनर्नवा (साठी) को ३२ | शकेराश्मरिशूलग्नं मूत्रकृच्छ्रप्रमोचनम् ॥ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे | कटयूरुबस्तिमेढस्थं कुक्षिशूलविनाशनम् ।
कफवातामशूलघ्नमन्त्रद्धेश्च नाशनम् ॥ कल्क-सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा,
कल्क-पुनर्नवा (साठी), गिलोय, शतावर, आमला, काकड़ासिंगी, धनिया, क.यफल, शठी
जवाखार, सेंधा नमक, सञ्चल नमक, विड नमक, ( कचूर ), दारुहल्दी, फूलप्रियङ्गु, पाख, रेणुका
सठी (कचूर), कूठ, बच, नागरमोथा, रास्ना, कायफल,
पोखरमूल, अजवायन, हाऊबेर, हींग, सोया, (संभालुके बीज ), कूठ, पुनर्नवा ( बिसखपरा
अजमोद, बायबिडंग, अतीस, मुलैठी, पीपल, साठी ), अजवायन, काला जीरा, इलायची, दाल
पीपलामूल, चव, चीता और सेठ १।-१। तोला चीनी, लोध, तेजपात, नागकेसर, बच, पोपलामूल,
लेकर पानी के साथ पीस लें । तत्पश्चात् २ सेर चव, चीतामूल, सोया, सुगन्धवाला, मजीठ, रास्ना
| तेल में यह कल्क, ४ सेर गोमूत्र और ४ सेर काञ्जी और धमासा । प्रत्येक ओषधि १।-११ तोला |
मिलाकर पकावें । लेकर पानीके साथ पीस लें।
इसे पीने तथा इसकी बस्ती लेने से शर्करा, विधि--२ सेर तिलका तैल तथा उपरोक्त | अश्मरी, शूल, मूत्रकृच्छू, कमरका दर्द, ऊरु की पीड़ा, काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । जब | बस्ति और लिङ्गकी पीड़ा, कोखका शूल, कफज
बस्ति और लिडकी काथ जल जाय तो तेलको छान लें।
शूल, आमशूल, वातज शूल और अन्त्रवृद्धि का यह तैल कामला, पाण्डु, हलीमक, अरुचि, ' नाश होता है।
तो छान लें।
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