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तैलपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[३७१ ]
(४१३१) पुनर्नवाद्यं तैलम्
यवानी भूतिकं मांसी निर्गुण्डी च तथा बला ॥ (वं. से.; वृ. नि. र. । हृद्रों.)
वनिर्गोक्षुरकञ्चैव मृणालं बहुपुत्रिका।
प्रतिकर्षमिदं योज्यं सर्वमेकत्र पाचयेत् ।। पुनर्नवां दारु सपञ्चमूलं
तैलशेष समुद्धत्य पुष्पराजप्रसारणीम् । रास्नां यवान्कोलकपित्थबिल्वम् ।
अभ्यङ्गे योजयेत्पाने नस्यकर्मणि सर्वदा ॥ पक्त्वा जले तेन पचेत्तु तैल
भग्नानां खञ्जपङ्गनां शिरोरोगे हनुग्रहे। मभ्यङ्गपानेऽनिलहृद्गदनम् ॥
समस्तान् वातजान् रोगांस्तूर्ण नाशयति ध्रुवम्।। पुनर्नवा ( साठी-बिसखपरा ), देवदारु,
काथ-प्रसारणी १०० पल (६। सेर), बेलछाल, अरलुकी छाल, खम्भारोकी छाल, पाढल
असगन्ध ५० पल ( ३ सेर १० तोले )। पाकार्थ की छाल, अरणी, रास्ना, जौ, बेर, कैथ और बेल
जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । गिरी । सब चीजें समान भाग मिश्रित ४ सेर
अन्य द्रव पदार्थ--गाय या भैंस का दूध ८ लेकर, कूटकर सब को ३२ सेर पानी में पकावें ।
सेर, सफेद कमल का रस २ सेर और शतावर का जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान कर उस
रस २ सेर । में २ सेर तिल का तेल मिलाकर पुनः पकावें । जब
कल्क-सोया, पीपल, इलायची, कूठ, कटेली, काथ जल जाय तो तेल को छान लें।
सेठ, मुलैठी, देवदारु, शालपर्णी, पुनर्नवा (साठी-- __इसे मर्दन करने और पीने से वातज हृद्रोग
बिसखपरा), मजीठ, तेजपात, रास्ना, बच, पोखरनष्ट होता है।
मूल, अजवायन, गन्धतृण, बालछड़, संभालु, खैरेटी, (४१३२) पुष्पराजप्रसारणीतैलम् चीता, गोखरू, कमलनाल और शतावर । सबै (धन्व. । वा. व्या.)
चीजें १।-१। तोला लेकर बारीक पिसवा लें ।
विधि-२ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त समस्त प्रसारणीपलशतं मूलश्चैवाश्वगन्धजम् ।
पदार्थ मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब तेलपश्चाशतपलमानन्तु जलद्रोणे विपाचयेत् ।।
मात्र शेष रह जाय तो छान लें। पादशेषे हरेत्काथं काथांशं तिलतैलकम् ।।
इसे पीना तथा इस की नस्य लेनी और तैलाचतुर्गुणं क्षीरं गव्यं वा माहिषं तथा ॥
मालिश करनी चाहिये । पुण्डरीकरसस्तत्र शतावर्यारसस्तथा। तैलसमः प्रदातव्यः पाचयेन्मृदुवहिना ।।
यह तैल भग्न (टूटी हुई ) हड्डी को जोड़ता शतपुष्पा कणा चैला कुष्ठश्च कण्टकारिका । | है । खञ्ज और पङ्गुत्व रोग तथा शिरोरोग, हनुशुण्ठी यष्टी देवदारु शालपर्णी पुनर्नवा ॥ | ग्रह और अन्य समस्त वातज रोगों को नष्ट मञ्जिष्ठा पत्रकं रास्ना वचा पुष्करमूलकम् । | करता है ।
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