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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलपकरणम् ] तृतीयो भागः। [३७१ ] (४१३१) पुनर्नवाद्यं तैलम् यवानी भूतिकं मांसी निर्गुण्डी च तथा बला ॥ (वं. से.; वृ. नि. र. । हृद्रों.) वनिर्गोक्षुरकञ्चैव मृणालं बहुपुत्रिका। प्रतिकर्षमिदं योज्यं सर्वमेकत्र पाचयेत् ।। पुनर्नवां दारु सपञ्चमूलं तैलशेष समुद्धत्य पुष्पराजप्रसारणीम् । रास्नां यवान्कोलकपित्थबिल्वम् । अभ्यङ्गे योजयेत्पाने नस्यकर्मणि सर्वदा ॥ पक्त्वा जले तेन पचेत्तु तैल भग्नानां खञ्जपङ्गनां शिरोरोगे हनुग्रहे। मभ्यङ्गपानेऽनिलहृद्गदनम् ॥ समस्तान् वातजान् रोगांस्तूर्ण नाशयति ध्रुवम्।। पुनर्नवा ( साठी-बिसखपरा ), देवदारु, काथ-प्रसारणी १०० पल (६। सेर), बेलछाल, अरलुकी छाल, खम्भारोकी छाल, पाढल असगन्ध ५० पल ( ३ सेर १० तोले )। पाकार्थ की छाल, अरणी, रास्ना, जौ, बेर, कैथ और बेल जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । गिरी । सब चीजें समान भाग मिश्रित ४ सेर अन्य द्रव पदार्थ--गाय या भैंस का दूध ८ लेकर, कूटकर सब को ३२ सेर पानी में पकावें । सेर, सफेद कमल का रस २ सेर और शतावर का जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान कर उस रस २ सेर । में २ सेर तिल का तेल मिलाकर पुनः पकावें । जब कल्क-सोया, पीपल, इलायची, कूठ, कटेली, काथ जल जाय तो तेल को छान लें। सेठ, मुलैठी, देवदारु, शालपर्णी, पुनर्नवा (साठी-- __इसे मर्दन करने और पीने से वातज हृद्रोग बिसखपरा), मजीठ, तेजपात, रास्ना, बच, पोखरनष्ट होता है। मूल, अजवायन, गन्धतृण, बालछड़, संभालु, खैरेटी, (४१३२) पुष्पराजप्रसारणीतैलम् चीता, गोखरू, कमलनाल और शतावर । सबै (धन्व. । वा. व्या.) चीजें १।-१। तोला लेकर बारीक पिसवा लें । विधि-२ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त समस्त प्रसारणीपलशतं मूलश्चैवाश्वगन्धजम् । पदार्थ मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब तेलपश्चाशतपलमानन्तु जलद्रोणे विपाचयेत् ।। मात्र शेष रह जाय तो छान लें। पादशेषे हरेत्काथं काथांशं तिलतैलकम् ।। इसे पीना तथा इस की नस्य लेनी और तैलाचतुर्गुणं क्षीरं गव्यं वा माहिषं तथा ॥ मालिश करनी चाहिये । पुण्डरीकरसस्तत्र शतावर्यारसस्तथा। तैलसमः प्रदातव्यः पाचयेन्मृदुवहिना ।। यह तैल भग्न (टूटी हुई ) हड्डी को जोड़ता शतपुष्पा कणा चैला कुष्ठश्च कण्टकारिका । | है । खञ्ज और पङ्गुत्व रोग तथा शिरोरोग, हनुशुण्ठी यष्टी देवदारु शालपर्णी पुनर्नवा ॥ | ग्रह और अन्य समस्त वातज रोगों को नष्ट मञ्जिष्ठा पत्रकं रास्ना वचा पुष्करमूलकम् । | करता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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