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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बैलमकरणम् ] कल्क-- पीपल, मुलैठी, बेलगिरी, सोया, । मैनफल, बच, कूठ, सोंठ, पोखरमूल, चीता और - देवदारु । समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर सबको पानीके साथ पीस लें और फिर २ सेर तिलके तैलमें यह काथ और ४ सेर दूध तथा ४ सेर पानी मिला कर पकावें । जब दूध और पानी जल जाय तो तैलको छान लें तृतीयो भागः । इसकी अनुवासन बस्ति लेनेसे अर्श, मूढ बात, कांच निकलना, शूल, मूत्रकृच्छू, प्रवाहिका ( पेचिश ), कमर, जंघा और पीठी दुर्बलता, अफारा, वाङ्क्षणशूल, पिच्छल (चिपचिपाहटवाला) दस्त होना, गुदशोथ और मलमूत्रका रुकना इत्यादि रोग नष्ट होते हैं । (४१२७) पिप्पल्याद्यं तैलम् (२) ( वं. से. । कर्ण. ) पिप्पल्यो बिल्वमूलं च कुष्ठं मधुकमेव च । सूक्ष्मैलादेवदारूणि मांसीव्याधीनखीगुरु ॥ गर्भेणानेन तैलस्य प्रस्थं मृमिना पचेत् । केयूरमूलकरसौ दद्यात्स्नेहेन संयुतौ ॥ तेन कर्णे पिचुं दद्याद्वस्तिकर्म च कारयेत् । तेनोपशाम्यते क्षिप्रं कर्णशुलं सुदारुणम् ॥ कल्क - पीपल, बेलकी जड़की छाल, कूठ, मुलैठी, छोटी इलायची, देवदारु, जटामांसी (बालछड़), कटेली, नख और अगर । सब चीजें समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर पानीके साथ पीस लें । विधि - २ सेर तिलका तेल, ४ सेर केमुआ का रस, ४ सेर मूलीका रस और यह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३६९ ] कल्क एकत्र मिलाकर पकायें। जब तेलमात्र शेष रह जाय तो छान लें। इस तैलमें रुई भिगोकर उसे कान में रखने और इसकी बस्ति लेनेसे दारुण कर्णशूल भी तुरन्त नष्ट हो जाता है । (४१२८) पीलुपण्याचं तैलम् ( च. स. । चि. अ. ऊरुस्त. ) पीलुपर्णी पयस्या व रास्ना गोक्षुरको बच्चा । सक्षौद्रं प्रसृतं तस्मादञ्जलिं वापि ना पिबेत् ॥ सरलागुरुपाठाश्च तैलमेभिर्विपाचयेत् ॥ काथ- पीलुपर्णी (मूर्वा), क्षीरकाकोली, रास्ना, गोखरु, बच, सरल (धूप सरल ), अगर और पाठा समान भाग मिश्रित ४ सेर । पाकार्थ जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । 1 कल्क – उपरोक्त समस्त चीजें समान भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर पानीके साथ पीस लें । विधि - - काथ, कल्क और २ सेर तिलके तेलको एकत्र मिलाकर पकावें । जब तेलमात्र शेष रह जाय तो छान लें । इसमें से १० तोळे या २० तोले तेल शहद में मिलाकर पीने से ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है । ( मात्रा -- ६ माशे से १ तोले तक ) (४१२९) पुनर्णवादितैलम् (भै. र. । शोथा. ) पुनर्णवा पलशतं जलद्रोणे विपाचयेत् । । तेन पादावशेषेण तैलप्रस्थं पचेद् भिषक् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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