SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org त- भैषज्य रत्नाकरः । [ ३५८ ] विधि-४० पल ( ५ सेर) घी, काथ, कल्क और ४० पल चूकेका रस तथा ३० सेर दही एकत्र मिलाकर पकावें । जब वृतमात्र शेष रह जाय तो छान भारत 1 इसे पिलाना और आहार के साथ खिलाना चाहिये । यह घृत ग्रहणी, अर्श, गुल्म, हृद्रोग, शोध, लीहा, उदररोग, अफारा, मूत्रकृच्छ्र, ज्वर, खांसी, हिचकी, अरुचि, श्वास और पार्श्वशूलको नष्ट करता तथा बल, वर्ण, पुष्टि और अग्निकी वृद्धि करता है । ( मात्रा -- तोला । ) (४०९६) पुनर्णवाघृतम् ( भै. र. । शोथा; च. द. | शोथा. ) पुनर्नवाकाथकल्कसिद्धं शोथहरं घृतम् । २ सेर पुनर्नवाको १६ सेर पानी में पकावें । जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें १ सेर घी और ६ तोले ८ माशे पुनर्नवाका कल्क मिलाकर पकायें । जब काथ जल जाय तो घृतको छान लें। यह घृत शोधको नष्ट करता है । ( मात्रा - १ तोला । ) (४०९७) पुनर्नवा दिघृतम् (१) (ग. नि. । मदात्य. अ. १७; र. र. च. द.; बूं. मा. । मदाव्य ) पयः पुनर्नवा कायटीकल्कमसाधितम् । घृतं पुष्टिकरं पानान्मद्यपानाद्धतौजसाम् || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ पकारादि ४ सेर पुनर्नवा ( बिसखपरे ) को ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें २ सेर घी, २ सेर दूध और २० तोले मुलैठीका कल्क मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें । मद्यपान के कारण जिन व्यक्तियोंका ओज क्षीण हो गया हो उनके लिये यह घृत पौष्टिक है। ( मात्रा १ तोला । ) (४०९८) पुनर्नवादिघृतम् (२) (ग.नि.; वृ. मा.; च. द. वं. से. । शोथा. ) पुनर्नवा चित्रक देवदारु पश्चोषणसारह रीतकीनाम् कल्केन पकं दशमूलतोये घृतोत्तमं शोथनिचूदनं हि ॥ कल्क – पुनर्नवा ( बिसखपरासाठी ), चीता, देवदारु, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेठ, यवक्षार और हरे । समान भाग- मिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर पानी के साथ पीस लें 1 काथ -- ४ सेर दशमूलको ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छान लें 1 विधि - २ सेर घी, कल्क और काथको एकत्र मिलाकर पका । जब घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें। यह घृत शोथको नष्ट करता है 1 ( मात्रा - १ तोला । ) (४०९९) पुनर्नवादिघृतम् (३) ( ग. नि. । श्वय. अ. १३ ) पुनर्नवा देवदारुपथ्यानागरसाधितम् । शुष्कमूलकनिर्यूहे वातशोफी घृतं पिबेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy