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त- भैषज्य रत्नाकरः ।
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विधि-४० पल ( ५ सेर) घी, काथ, कल्क और ४० पल चूकेका रस तथा ३० सेर दही एकत्र मिलाकर पकावें । जब वृतमात्र शेष रह जाय तो छान
भारत
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इसे पिलाना और आहार के साथ खिलाना चाहिये ।
यह घृत ग्रहणी, अर्श, गुल्म, हृद्रोग, शोध, लीहा, उदररोग, अफारा, मूत्रकृच्छ्र, ज्वर, खांसी, हिचकी, अरुचि, श्वास और पार्श्वशूलको नष्ट करता तथा बल, वर्ण, पुष्टि और अग्निकी वृद्धि करता है ।
( मात्रा -- तोला । ) (४०९६) पुनर्णवाघृतम्
( भै. र. । शोथा; च. द. | शोथा. ) पुनर्नवाकाथकल्कसिद्धं शोथहरं घृतम् ।
२ सेर पुनर्नवाको १६ सेर पानी में पकावें । जब ४ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें १ सेर घी और ६ तोले ८ माशे पुनर्नवाका कल्क मिलाकर पकायें । जब काथ जल जाय तो घृतको छान लें।
यह घृत शोधको नष्ट करता है । ( मात्रा - १ तोला । ) (४०९७) पुनर्नवा दिघृतम् (१)
(ग. नि. । मदात्य. अ. १७; र. र. च. द.; बूं. मा. । मदाव्य ) पयः पुनर्नवा कायटीकल्कमसाधितम् । घृतं पुष्टिकरं पानान्मद्यपानाद्धतौजसाम् ||
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[ पकारादि
४ सेर पुनर्नवा ( बिसखपरे ) को ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छानकर उसमें २ सेर घी, २ सेर दूध और २० तोले मुलैठीका कल्क मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें ।
मद्यपान के कारण जिन व्यक्तियोंका ओज क्षीण हो गया हो उनके लिये यह घृत पौष्टिक है। ( मात्रा १ तोला । ) (४०९८) पुनर्नवादिघृतम् (२) (ग.नि.; वृ. मा.; च. द. वं. से. । शोथा. ) पुनर्नवा चित्रक देवदारु पश्चोषणसारह रीतकीनाम् कल्केन पकं दशमूलतोये घृतोत्तमं शोथनिचूदनं हि ॥
कल्क – पुनर्नवा ( बिसखपरासाठी ), चीता, देवदारु, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेठ, यवक्षार और हरे । समान भाग- मिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर पानी के साथ पीस लें 1 काथ -- ४ सेर दशमूलको ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छान लें 1
विधि - २ सेर घी, कल्क और काथको एकत्र मिलाकर पका । जब घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें।
यह घृत शोथको नष्ट करता है 1 ( मात्रा - १ तोला । ) (४०९९) पुनर्नवादिघृतम् (३)
( ग. नि. । श्वय. अ. १३ ) पुनर्नवा देवदारुपथ्यानागरसाधितम् । शुष्कमूलकनिर्यूहे वातशोफी घृतं पिबेत् ॥
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