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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [३५९] - - कल्क-पुनर्नवा (बिसखपरा---साठी), । (४१०१) पुनर्नवाणं घृतम् (२) देवदार, हर्र और सेठ समान भाग-मिश्रित १३ (ग. नि. । राजय. अ. ९) तोले ४ माशे लेकर पानीके साथ पीस लें। | पुनर्नवावलारास्नास्थिरापिप्पलिगोक्षुरैः । काथ-४ सेर सूखी मूलीको ३२ सेर जीवन्त्या च घृतं सिद्धं पयसा शोषजित्परम् ॥ पानी में पकाकर ८ सेर पानी शेष रहने पर काय--पुनर्नवा (बिसखपरा--साठी), छान लें। खरैटी, रास्ना, शालपर्णी, पीपल, गोखरु और विधि--काथ, कल्क और २ सेर घीको | जोवन्ती समान भाग मिश्रित १ सेर लेकर, कूट एकत्र मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो कर सबको ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर घीको छान लें। पानी शेष रह जाय तो छान लें । इसके सेवनसे वातज शोथ नष्ट होता है। कल्क-उपरोक्त समस्त ओषधियां समान-- (४१००) पुनर्मवाचं घृतम् (१) भाग-मिलित २० तोले लेकर पानी के साथ (भै. र. । शोथा.) | | पीस लें। पुनर्णवा तुला ग्राहया जलद्रोणे विपाचयेत् । विधि--काथ, कल्क, २ सेर थी और २ चतुर्भागावशेषेण घृतपस्थं विपाचयेत् ॥ सेर दूध एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र अनिम्बविजया शुण्ठी शोयनामरदारु च । । शेष रह जाय तो छान लें । कासं श्वासं ज्वर हन्ति शोयश्चापि सुदारुणम् ॥ इसके सेवन से शोथ नष्ट होता है । काथ--६। सेर पुनर्नवा (बिसखपरा- (मात्रा--१ तोला ।) साठी ) को ३२ सेर पानी में पकावे । जब ८ । (४१०२) पुनर्नवाचं घृतम् (३) सेर पानी शेष रहे तो छान लें। (वा. भ. । चि. अ. ३ ) ___ कल्क-चिरायता, भांग, सेठ, पुनर्नवा ओर-देवदारु समान भाग मिश्रित १३ तोले पुनर्नवशिवाटिकासरलकासमामृता __ पटोलहतीफणिज्मकरसैः पयः संयुतैः। माशे लेकर सबको पानीके साथ पीस लें। विधि-काथ, कल्क और २ सेर घृतको घृतं त्रिकटुना च सिद्धमुपयुज्य सञ्जायते एक साथ मिलाकर पकावें जब काथ जल जाय न कासविषमज्वरक्षयगुदाङ्करेभ्यो भयम्॥ तो घृतको छान लें। काथ--लाल और सफेद पुनर्नवा ( बिस__इसके सेवनसे खांसी, श्वास, ज्वर और कष्ट- | खपरा-साठी), सरल (धूप सरल ), कसौंदी, साध्य शोथ नष्ट हो जाता है। गिलोय, पटोल, कटेली और तुलसी समान-भाग(मात्रा--१ तोला ।) | मिश्रित ४ सेर लेकर, कूटकर सबको ३२ सेर For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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