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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [३५७] ० मा ८५ विषि-काथ, कल्क और २ सेर घीको | विधि-काथ, कल्क, २ सेर घी, २ सेर एकत्र मिलाकर पकावें। दही और २ सेर दूध एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें। | जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें । इसे मन्दाष्ण दूधमें डालकर पिलानेसे बालकों ____यह घृत पीने तथा मर्दन करनेसे वातज, के दांत निकलनेके समय होने वाले समस्त पित्तज, कफज और सन्निपातज सूतिका रोगको रोग नष्ट होते हैं। नष्ट करता है। (४०९४) पिप्पल्या घृतम् (८) ( मात्रा--१ तोला ।) (वं. से.; र. र. । सूतिका.) | (४०९५) पिप्पल्यायं घृतम् (९) पिप्पली पिप्पलीमूलं चित्रको हस्तिपिप्पली । (च. सं. । चि. अ. १४ अर्श. ) चव्यश्च रजनी देया भद्रमुस्तवचाभयाः॥ पिप्पलीं नागरं पाठां श्वदंष्ट्रां च पृथक् पृथक् । धान्यकमजमोदा च सपश्चलवणानि च । | भागांस्त्रिपलिकान् कृत्वा कषायमुपकल्पयेत् ॥ भद्रदारुयवानी च भाङ्गीकुटजतण्डुलाः ॥ गण्डीरं पिप्पलीमूलं व्योष चव्यं च चित्रकम् । कण्टकार्याश्च मूलं वै वृहती बिल्वपेशिका । पिष्ट्वा कषाये विनयेत्पूते द्विपलिकं पृथक् ॥ मरिचानि विडङ्गानि कल्कैरेतैश्च पादिकैः॥ | पलानि सर्पिषस्तस्मिश्चत्वारिंशत्मदापयेत् । यवकोलकुलित्थानां निषूहे च चतुर्गुणे। चणे।" | चाङ्गेरी स्वरसं तुल्यं सर्पिषा दधिषड्गुणम् ॥ दधिप्रस्थं पयः प्रस्थं दत्त्वा प्रस्थं घृतं पचेत ॥ मृमिना ततः साध्य सिद्धं सर्पिर्निधापयेत । वातिकान्पैत्तिकांश्चैव श्लैष्मिकान्सानिपातिकान। तदाहारे विधातव्य पाने प्रायोगिके विधौ ॥ सूतिकोपद्रवान्सर्वानभ्यङ्गादेव नाशयेत् ॥ ग्रहण्यशीविकारघ्नं गुल्महृद्रोगनाशनम् । ___ कल्फ-पीपल, पीपलामूल, चीता, गज शोथप्लीहोदरानाहमूत्रकृच्छज्वरापहम् ॥ पीपल, चव, हल्दी, नागरमोथा, बच, हर्र, धनिया, | | कासहिकारुचिश्वाससूदनं पाचशूलनुत् । अजमोद, पांचों नमक, देवदारु, अजवायन, बलपुष्टिकरं वर्ण्यमग्निसन्दीपनं परम् ॥ भरंगी, इन्द्रजौ, कटेलीकी जड़, बड़ीकटेली, बेलगिरी, काथ-पीपल, सांठ, पाठा और गोखरु कालीमिर्च और बायबिडंग समान-भाग-मिश्रित | ३-३ पल ( प्रत्येक १५ तोले) लेकर सबको २० तोले लेकर सबको पानीके साथ पीस लें। । ८ गुने पानीमें पकावें । काथ-~-जौ, बेर और कुलथी समान-भाग जब चौथा भाग पानी शेष रहे तो छान लें। मिलित ४ सेर लेकर कूटकर सबको ३२ सेर कल्क-मजीठ, पीपलामूल, सोंठ, मिर्च, पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रह जाय । पीपल, चव और चीता । प्रत्येक ओषधि १०-१० तो छान लें। तोले लेकर सबको पानीके साथ पीस लें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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