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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३५६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि - (४०९२) पिप्पल्यावं घृतम् (६) ( साठी-बिसखपरा ), गजपीपल, जीरा, चूका, (ग. नि. । परिशि. घृता. ) बेरीकी जड़की छाल, पोखरमूल, तेजपात और पिप्पलीमरिचडिजनागरं कुस्तुम्बरु । प्रत्येक वस्तु १।-१। तोला लेकर सबको पानीके साथ पीस लें। मातुलुङ्गमथ विल्वशुण्ठिका। तदनन्तर यह कल्क, २ सेर घी और ८ कुष्ठधान्यकमयाम्लवेतसं सेर दूध एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । ___ क्षारवन्ति लवणानि पञ्च च ॥ जब दूध जल जाय तो घृतको छान लें । सिन्तिडीकमय कारवी वचा दाडिमं च चविका तथैव च । यह घृत शारीरिक और मानसिक वात व्याधि, पार्श्वपीड़ा, कमरका दर्द, ठोडीका चित्रकं च सपुनर्नवं भवेद् हस्तिपिप्पलियुता हयजाजिका ॥ रह जाना, जत्रुरोग, क्षय और समस्त वात-व्याधियों तथा गरविषको नष्ट करता है । एवं वृद्धों में शुक्तिकाबदरमूलपौष्करं बल वर्णकी वृद्धि करता है। पत्रकेण सह तुम्बरु स्मृतम् । (४०९३) पिप्पल्याचं घृतम् (७) कर्षभागसहितांस्तथा हरेत् श्लक्ष्णपिष्टमय समयेत्ततः॥ (भै. र. । बालरोग.) पिप्पलीधातकीपुष्पधात्रीफलकशेरुभिः। प्रस्थमत्र तु घृतस्य दापयेत् वचामूर्यास्तापाठाकटुकातिरिसाधनैः । दन एव च भवेत्तदाढकम् । जीवनीयघृतं सिदं शस्तं दशनजन्मनि । सर्वमेतदभिमृश्य शास्त्रतः पाचयेत मृदुनाऽग्निना सुखम् ॥ मुखोष्णेन यथामात्रं पयसैतस्मयोजयेत् ॥ मारुतोपहतगात्रचेतसां काथ-पीपल, धायके फूल, आमला, कसेरु, पार्श्वपृष्ठहनुजत्रुरोगिणाम् । बच, मूर्वा, गिलोय, पाठा, कुटकी, अतीस, नागर मोथा और जीवनीय गणकी ओषधियां सब क्षयगरविषदूषितान् मनुष्यान् समान-भाग-मिलित ४ सेर लेकर कूटकर सबको __गतवयसो बलवर्णविप्रयुक्तान् ॥ ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष घृतमिदमगदान्करोति सधः रहे तो छान लें। पवनकृतान् शमयेच्च सर्वरोगान् ।। कल्क–पीपल, कालीमिर्च, हींग, सोंठ, | कल्क-उपरोक्त ओषधियां समान-भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर सबको पानीके विजो रे नीबूकी जड़, बेलगिरी, कूठ, धनिया, अम्लबेत, यवक्षार, पांचों नमक, तिन्तडीक, साथ पीस लें। कलौंजी, बच, अनारदाना, चव, चीता, पुनर्नवा | जीवनीय गण-प्रयोग संख्या १९८२ देखिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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