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घृतप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
[३५५]
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पीतं पीतं च यः स्तन्यं सवातमतिसार्यते।। (कल्कके लिये सब चीजें समान-भागतस्याप्येतत्परं पध्यं दीपनं बलवर्णकृत् ॥ मिश्रित २० तोले । धी २ सेर । गोमूत्र ८ सेर ।)
पीपल, पीपलामूल, कुटकी, देवदारु, जवा- (४०९१) पिप्पल्या घृतम् (५) खार, सज्जीखार, बिडलवण, जीरा, बेलगिरी, चीता
( वै. म. र. । पटल ३) और अजवायन समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर सबको पानीके साथ पीस लें। तत्पश्चात पिप्पली पिप्पलीमूलं चित्रको हस्तिपिप्पली। यह कल्क, २ सेर घी, २ सेर दही, २ सेर सौवी
सैन्धवं सयवक्षारं हिङ्गसौवर्चलं तथा ॥ रक, २ सेर सुरामण्ड और २ सेर उपरोक्त कल्क- | मरिचं नागरं चैव पलांशैस्तैर्विपाचयेत् । वाली ओषधियोंका काथ लेकर सबको एकत्र क्षीरे चतुर्गुणे सम्यक् सर्पिः सिद्धं पिबेन्नरः ।। मिलाकर पकायें। जब घृतमात्र शेष रह जाय तो शूलगुल्मोदरार्तिघ्नं हृद्रोगोरःक्षतापहम् । छान लें।
आनाहपाण्डुताप्लीहकासश्वासविकारनुत् ।। ___ जो बालक दूध पीकर तुरन्त वमन कर देता
पिप्पल्याघमिदं सर्पिः पित्तगुल्महरं परम् ॥ हो या जिसे अपान वायुके साथ दस्त आता हो कल्क-पीपल, पीपलामूल, चीता, गजउसके लिये यह घृत अत्यन्त उपयोगी है। पीपल, सेंधानमक, जवाखार, हींग, सञ्चल (काला
इसके सेवनसे अग्नि दीप्त और बलवर्णकी नमक), काली मिर्च और सेठ । प्रत्येक ५-५ वृद्धि होती है।
तोले लेकर पानी के साथ पीस लें। (काथ बनाने के लिये समस्त ओषधियां
काथ-उपरोक्त चीजें सम-भाग-मिश्रित
- समान-भाग-मिश्रित १ सेर । पाकार्थ जल ८
५ सेर । पाकार्थ जल ८० सेर । शेष काथ सेर । शेष काथ २ सेर ।)
२० सेर । (४०९०) पिप्पल्याचं घृतम् (४)
विधि--कल्क, काथ, ५ सेर घी और २० " (. यो. त. । त. ८१)
| सेर दूध लेकर सबको एकत्र मिला कर पकावें । पिप्पली पिप्पलीमूल मरिच विश्वभेषजम् ।
जब घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें। पोन्मत्रेण मतिमान्कफजे स्वरसंक्षये ॥ पीपल, पीपलामूल, कालीमिरच और सेठिके
____ यह घृत शूल, गुल्म, उदररोग, हृद्रोग, कल्क तथा चार गुने गोमूत्रके साथ सिद्ध घृत उरःक्षत, अफारा, पाण्डु, तिल्ली, खांसी, श्वास कफज स्वरभंगको नष्ट करता है।
और पित्तगुल्मको नष्ट करता है। ( मात्रा-१ तोला)
(मात्रा-१ नोला ।)
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