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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ३५४] मिलाकर पका । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान 1 इसे ५ तोलेकी मात्रानुसार पीकर ऊपरसे पेया या मण्ड पीना चाहिये । भारत-भैषज्य ( व्यवहारिक मात्रा - - १ तोला । ) (४०८७) पिप्पल्या घृतम् (१) ( च. सं. । चि. अ. ३; वृं. मा.; वृ. नि. र.; वं. से.; र. र.; भै. र. । ज्वरा . ) पिप्पल्यश्चन्दनं मुस्तमुशीरं कटुरोहिणी । कलिङ्गकस्तामलकी' सारिवाऽतिविषास्थिरा ॥ द्राक्षामलकबिल्वानि त्रायमाणा निदिग्धिका । सिद्धमेतैर्धृतं सद्यो जीर्णज्वरमपोहति ॥ क्षयं कासं शिरःशूलं पार्श्वशूलं हलीमकम् । साभितापम िच विषमं सन्नियच्छति ॥ यह घृत जीर्णज्वर, क्षय, खांसी, शिरशूल, पसलीका दर्द, हलीमक और अंसाभिताप ( कन्धों इसके सेवन से श्वास, खांसी संग्रहणी और की तपन ) को शीघ्र ही नष्ट कर देता है। तथा गुल्मका नाश होता है । इसके सेवनसे विषमानि ठीक हो जाती है । ( मात्रा - १ तोला । ) नोट - काथमें लाल चन्दन तथा कल्क में सफेद चन्दन डालना चाहिये । (४०८८) पिप्पल्याद्यं घृतम् (२) काथ- पीपल, चन्दन, नागरमोथा, खस, कुटकी, इन्द्रजौ, भुईआमला, सारिवा, अतीस, शालपर्णी, दाख ( मुनक्का ), आमला, बेलछाल, त्रायमाना और कटेली । सब चीजें समान -भाग-मिश्रित ४ सेर लेकर ३२ सेर पानी में पकायें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छान लें । - रत्नाकरः । [ पकारादि एकत्र मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो घीको छान लें. । १ कलिङ्गकरत्वा मलकीति पाठान्तरम् । २ द्राक्षामलकवीजानीति पाठान्तरम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( वृ. मा. वं. से.; च. द । राजयक्ष्मा; वृ. नि. र. वं. से. । कास.; बृ. यो. त. । त. ७८ ) पिप्पलीगुडसंसिद्धं छागक्षीरयुतं घृतम् । एतदप्रिविद्धयर्थं सर्पिश्च क्षयकासिनाम् ॥ पीपलका कल्क १० तोले तथा गुड़ १० तोले, घी २ सेर और बकरीका दूध ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें 1 इसके सेवन से क्षय और खांसी नष्ट होती तथा अग्नि तीव्र होती है । ( मात्रा - १ तोला कल्क-उपरोक्त समस्त चीजें सम-भागमिश्रित १३ तोले ४ माशे लेकर सबको पानीके साथ पीस लें । (४०८९) पिप्पल्यार्थं घृतम् (३) (ग.नि. । बाल. ) पिप्पलीपिप्पलीमूलकटुकादेवदारुभिः । विधि- -- यह काथ, कल्क और २ सेर घी क्षारद्वयविड।जाजीविल्वमध्याग्रिदीप्यकैः ॥ दविसौवीरकसुरामण्डैश्च विपचेद् घृतम् । हन्ति प्रयुक्तं तत्काले रोगान् परिभवाश्रयान् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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