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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] तृतीयो भागः। [३५३] (४०८३) पिप्पलीघृतम् (१) । (४०८५) पिप्पलीचित्रककृतम् (वृ. मा.। उदरा.) (च. द.; वं. से.; भै. र. । प्लीहा.) पिप्पलीकल्कसंयुक्त घृतं क्षीरचतुर्गुणम् । पिप्पलीचित्रकान्मूलं पिष्ट्वा सम्यग्विपाधयेत् । पचेत्प्लीहामिसादादियकृद्रोगहरं परम् ॥ घृतं चतुर्गुणक्षीरं यकृत्प्लीहोदरापहम् ॥ पानीके साथ पिसी हुई पीपल २० तोले, पीपल १० तोले तथा चीतेकी जड़ १० घी २ सेर और दूध ८ सेर लेकर सबको एकत्र | तोले लेकर दोनों को पानी के साथ पीस लें। तदनन्तर यह कल्क, २ सेर घी और आठ सेर मिलाकर दूध जलने तक पकावें । तदनन्तर छान लें। दूध एकत्र मिलाकर पकावें । जब दूध जल जाय यह घृत तिल्ली, अग्निमांद्य, और यकृद्रोगोंको तो घीको छान लें। नष्ट करता है। इसके सेवनसे यकृत् , प्लीहा और उदररोग ( मात्रा-१ तोला।) नष्ट होते हैं। (१०८४) पिप्पलीघृतम् (२) (मात्रा-१ तोला) (र. र.; च. द. । शूला.; यो. र.; वं. से.; | (४०८६) पिप्पल्यादिघृतम् वृ. मा.; वृ. यो. त. । अम्लपि.) (च. सं. । चि. अ. १८ कास.) कापेन कल्केन च पिप्पलीनां पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः। सिद्धं घृतं माक्षिकसंप्रयुक्तम् ।। धान्यपागवचारास्नायष्टयाहक्षारहिङ्गुभिः॥ क्षीरानपस्यैव निहन्त्यवश्य कोलमात्रैघृतपस्थादशमूलीरसाढके। शूलं प्रदं परिणामसंझम् ॥ सिदाचतुर्थिकां पीत्वा पेयामण्डं पिबेदनु । तच्यासकासहत्पार्श्वग्रहणीदोषगुल्मनु । पीपलका काथ ८ सेर, पीपलका कल्क १३ पिप्पल्याधं घृतं चैतदात्रेयेण प्रकीर्तितम् ॥ तोले ४ मारो और धी २ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो घीको कल्क-पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेठ, धनिया, पाठा, बच, रास्ना, मुलैठी, जवाछान लें। खार और हींग । प्रत्येक ७॥ माशे लेकर सबको इसे शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रवृद्ध | पानीके साथ पीस लें। परिणाम शूल अवश्य नष्ट हो जाता है। काथ--दशमूल ४ सेर । पाकार्थ जल ३२ पथ्य-दूधभात। सेर । शेष काथ ८ सेर । (मात्रा-घी १ तोला । शहद २ तोले । ) विधि-२ सेर घी, कल्क और काथ एकत्र For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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